श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 98 ☆ -हिंदूधर्माचरण एक संस्कारित भारतीय जीवनशैली- ☆
हमारा देश भारतवर्ष पौराणिक कथाओं तथा धार्मिक मतों के अध्ययन के अनुसार आर्यावर्त के जंबूद्वीप के एक खंड का हिस्सा है जिसे अखंडभारत के नाम से पहचाना जाता है। जिसका सीमा विस्तार काफी लंबा था आर्य जहां निवास करते थे ऋग्वेद के अनुसार उस जगह को सप्तसैंधव अर्थात् सात नदियों वाले स्थान के नाम चिंन्हित किया गया। ऋग्वेद नदी सूक्त ( 1075 ) के अनुसार जिस जगह आर्य निवास किए वहां सात नदियां बहती थी, जिसमें 1कुंभा(काबुल नदी) 2- क्रुगु (कुर्रम)3–गोमती(गोमल)4–सिंधु
5–परूष्णी(रावी)6–सुतुद्री(सतलज)7–वितस्ता(झेलम) के अलावा गंगा यमुना सरस्वती तक था इनके आस-पास सीमा क्षेत्र में आर्य रहते थे। लेकिन जल प्रलय के समय आर्यो ने खुद को त्रिविष्टप( तिब्बत) जैसे ऊंचे क्षेत्र में खुद को सुरक्षित कर लिया।जल प्रलय के बाद उन्होंने दक्षिणी एशिया तक अपने देश का सीमा विस्तार किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती इसी आधार पर आर्यों को तिब्बत का निवासी मानते हैं। ऋग्वेद काल में धरती का विस्तार से अध्ययन मिलता है उस समय आर्यो का एक समूह उन सात नदी क्षेत्रो तक फैला हुआ था , इतिहास कारों का मानना है कि वैदिक भारतीय जन समूह वहीं से घूमते हुए अन्य जगहों पर पहुंचा। तथा राजा प्रचेतस के जिनका वर्णन पांच पुराणों में आता है,वे प्रचेतस वंशजों के रूप में वे भारत के उत्तर पश्चिमी दिशाओं में फैल कर अपने राज्य स्थापित कर सीमा विस्तार किया। जानकारी स्रोत (बेव दुनिया डांट काम) से—
राजा दुष्यंत के महाप्रतापी पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। लेकिन हमारे अध्ययन के अनुसार देश में तीन भरत चरित्र हमारे सामने है जो सामूहिक रूप से हमारे देश हमारी संस्कृति तथा हमारे समाज के आचार विचार व्यवहार तथा मानवीय गुणों की आदर्श तथा अद्भुतछवि विश्व फलक पर प्रस्तुत करता है।
जिसमें समस्त मानवीय मूल्यों आदर्शों की छटा समाहित है जो हमें हमारे सांस्कृतिक संस्कारों की याद दिलाता रहता है, जो इंगित करता है कि बिना संस्कारों के संरक्षण के कोई समाज उन्नति नहीं कर सकता। संस्कार विहीन समाज टूट कर बिखर जाता है और अपने मानवीय मूल्य को देता है वैसे तो हर धर्म और संस्कृति के लोग अपने देश काल परिस्थिति के अनुसार अपने अपने संस्कारों के अनुसार व्यवहार करते है लेकिन हमारा समाज सोडष संस्कारों की आचार संहिता से आच्छादित है जिसमें मुख्य रूप से 1–गर्भाधान संस्कार 2–पुंशवन संस्कार 3–सीमंतोन्नयन संस्कार 4–जातकर्म संस्कार 5–नामकरण संस्कार 6–निष्क्रमण संस्कार 7–अन्नप्राशन संस्कार 8–मुण्डन संस्कार 9–कर्णवेधन संस्कार 10-विद्यारंभ संस्कार 11-उपनयन संस्कार 12-वेदारंभ संस्कार 13-केशांत संस्कार 14-संवर्तन संस्कार 15–पाणिग्रहण अथवा विवाह संस्कार 16-अंतेष्टि संस्कार।
इनमें से हर संस्कार का मूलाधार आदर्श कर्मकांड पर टिका हुआ है। हमारे आदर्श ही हमारी संस्कृति की जमा-पूंजी है , यही तो हर भरत चरित्र हम भारतवंशियो की आचार-संहिता की चीख चीख कर दुहाई देता है जिसका आज पतन होता दीख रहा है आज जहां भाई ही भाई के खून का प्यासा है। वहीं त्रेता युगीन भरत चरित भ्रातृप्रेम तथा स्नेह की अनूठी मिसाल प्रस्तुत करता है, तो द्वापरयुगीन भरत चरित सूर वीरता शौर्य तथा साहस की भारतीय परम्परा की गौरवगाथा की जीवंत झांकी दिखाता है।
वहीं जड़भरत का चरित्र हमारी आध्यात्मिक ज्ञान की पराकाष्ठा को स्पर्श करता दीखता है ये नाम हर भारतीय से आदर्श आचार संहिता की अपेक्षा रखता है जो हमारे समाज की आन बान शान के मर्यादित आचरण की कसौटी है।
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
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