श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 100 ☆
☆ मैं उसको पावन कहता था ☆
माँ की छाती का मिला दूध,
उसको मैं पावन कहता था।
उसकी आँखों से ढुलके मोती,
उसको मैं सावन कहता था।
उसके आँचल की छाँव मिली,
उसमें ही जीवन पलता था।
उसकी उँगली का मिला सहारा,
नन्हें पाँवों से चलता था।
।। माँ की छाती का मिला दूध।।1।।
माँ जब जब गुस्सा होती थी,
तब मुझे डाँटती जाती थी।
दिल में प्यार उमड़ता था,
आँखों से बदली बरसाती थी।
वह हर मंदिर में जाती थी,
मेरी ही कुशल मनाती थी ।
उसकी आँखें भर आती थी,
जब मेरी याद सताती थी।
।। माँ की छाती का मिला दूध।।2।।
आँखों में गुस्सा दिल में प्यार,
ना आए समझ तेरा व्यवहार।
जो भी रूखा सूखा मिलता,
वह पहले मुझे खिलाती थी।
पेट मेरा भरने की खातिर,
तू खुद भूखी सो जाती थी।
न जाने कितने जतन किए,
तूने मुझे पढ़ाने की खातिर।
अपने सारे श्रम का फल ,
तूने मुझे चढ़ाने की खातिर।
अपने आंखों के पीकर आंसू,
तूने तो मुझको पाला था।
माँ तेरी फौलादी हिम्मत,
ने ही तो मुझे संभाला था।
।। माँ की छाती का मिला दूध।।3।।
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।