श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख – “सात समंदर पार” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख ☆ सात समंदर पार – भाग – 3 ☆ श्री राकेश कुमार ☆
पुरानी आदतें जीवन के साथ ही जाती हैं। बचपन में पिताजी रेल यात्रा के प्रस्थान समय से कम से कम दो घंटे पूर्व स्टेशन पर पहुंच जाते थे। हमारा एक समय का भोजन तो प्लेटफार्म पर ही हुआ करता था। अपने जीवन के अंतिम दौर में हमने भी विमानतल पर दो घंटे पूर्व पहुंच कर घर से लाए हुए भोजन का आनंद लिया।
विमान प्रस्थान के चार घंटे पूर्व प्रवेश करने के लिए लंबी लाइन लगी हुई थी। रात्रि के बारह बजे का समय, लाइन में खड़े युवा बहुत परेशान हो रहे थे। हमारे जैसे लोगों को कोई परेशानी नहीं थी, क्योंकि साठ के दशक में राशन की लाइन में घंटो खड़े रहकर पीएल 480 वाला लाल गेहूं घर के लिए लाना पड़ता था।
मन में एक भय अवश्य रहता है, कि कहीं टिकट, पासपोर्ट इत्यादि में कोई कमी ना निकल जाय। ऊपर वाले की कृपा से सब कुछ दो घंटे में हो गया था। विमानतल में भी प्रस्थान के कई प्लेटफार्म होते हैं। उन तक पहुंचने के लिए काफ़ी दूर जाना पड़ता हैं। रास्ते में कस्टम फ्री मदिरा, सिगरेट और अन्य सैंकड़ों दुकानें जिनमें सभी सामान खुला पड़ा हुआ था। कोई शटर, ताले नहीं दिख रहे थे। शायद इसी को रामराज्य कहते हैं। चूँकि दुकानें चौबीसों घंटे खुली रहती हैं, इसलिए चोरी इत्यादि की संभावना कम होती है। वैसे आजकल तो सीसी टीवी कैमरे ही चोरों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। बाजार में इतनी चकाचौंध कि आँखें फट रही थी। अपने प्लेटफार्म पर पहुंच कर इंतजार करने लगे, तभी एक तिपैया वाहन हवाई जहाज के आकार में मदिरा की बिक्री में लगा हुआ था। घूम घूम कर प्लेटफार्म पर बैठे हुए यात्रियों के आकर्षण का केंद्र बन चुका था। हमारा प्लेन भी प्लेटफार्म पर लग गया और हम प्रवेश की लाइन में लग गए। अगले भाग के लिए इंतजार करें। हमने भी तो विगत छः घंटे इंतजार में ही व्यतीत किए हैं।
क्रमशः…
© श्री राकेश कुमार
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