श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  कशी निवासी लेखक श्री सूबेदार पाण्डेय जी द्वारा लिखित आलेख  काशी महिमा–काशी‌ तीन लोक से न्यारी भाग–१”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – काशी महिमा–काशी‌ तीन लोक से न्यारी भाग–१

(दो‌ शब्द‌ लेखक के— काशी को मोक्षदायिनी नगरी कहा जाता है, हर व्यक्ति मोक्ष  की कामना ले अपने जीवनकाल में एक बार काशी अवश्य आना चाहता है।आखिर ऐसा क्या है? कौन सा आकर्षण है जो लोगों को अपनी तरफ चुंबक सा खींचता है? लेखक इस आलेख के द्वारा काशी, काशीनाथ, गंगा, अन्नपूर्णा तथा भैरवनाथ की महिमा से प्रबुद्ध पाठक वर्ग को अवगत कराना चाहता है। आशा है आपका स्नेह प्रतिक्रिया के रूप में हमें पूर्व की भांति मिलता ‌रहेगा ।  – सूबेदार पाण्डेय )

श्लोक—

यत्रसाक्षान्महादेवो देहान्तेस्ययीश्वर:।  व्याचष्टे तारकंब्रह्म तत्रैवहविमुक्तके।।१।।

वरूणायास्थ चास्येमध्ये वाराणसीं पुरी। तत्रैवस्थितंतत्वं नित्यमेव विभुक्तमं।।२।।

वाराणस्या:परस्थानं भूतों न भविष्यति। यत्र नारायणो देवों महादेवों दीवीश्वर:।।३।।

महापातकिनों देवी ये तेभ्यपापवृत्तमा:। वाराणसींसमासाद्यं तेयांति परमांम् गति।।४।।

तस्मान्मुमुक्षुर्नियतो बसे द्वै मरणांतकम्। वाराणस्यो महादेवान्ज्ञान लब्ध्वा विमुच्यते।।५।।

(पद्मपुराण स्वर्गखंड ३३–४६—४९–५०–५२—५३)

अर्थात् अविमुक्त क्षेत्र वाराणसी में (वरूणा और असि) के बीच के क्षेत्र में मृत्यु को प्राप्त होने पर मैं अर्थात महादेव जीवन जगत को तारक मंत्र (रामनाम) का उपदेश दे कर मोक्ष प्रदान करता हूँ। वरूणा और असि का यह क्षेत्र ही वाराणसी पुरी के नाम से विख्यात है। जहां नित्य विमुक्त तत्व विराज मान है। वाराणसी से उत्तम स्थान न तो हुआ है न तो होगा। जहां भगवान श्री नारायण हरि तथा मै महादेव स्वयं काशी के कण कण में विराजमान हूँ। हे देवि जो महापात की पापाचार में लिप्त है, वो वाराणसी में आकर समस्त पापों से मुक्ति पाकर मोक्ष प्राप्त करता है। मुमुक्षु पुरुष तो मृत्यु पर्यंत काशी वास की कामना करते हैं। जहां वह मुझसे आत्मज्ञान पा परमगति मोक्ष पा कर बंधनों से मुक्त हो जाता है।

पौराणिक श्रुति के अनुसार इस काशी का अस्तित्व शिव के त्रिशूल पर टिका है, जहां पिशाच मोचन कुंड पर भगवान विश्वनाथ कपर्दीश्वर महादेव के रूप में पूजित हो जीव को प्रेत योनि से मुक्त करते हैं। और व्यक्ति ब्रह्महत्या के पातक दोष से मुक्त हो जाता है। इस क्रम में पद्मपुराण में वर्णित  शंकुकर्ण ऋषि तथा प्रेतात्मा संवाद कथा पठन योग्य है। जहां धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज भी व्यक्ति प्रेतात्मा दोष निवारणार्थ तथा पितृ मोक्ष हेतु गया तीर्थ जाने से पूर्व पिशाच मोचन कुंड में स्नान कर  कपर्दीश्वर महादेव का पूजन कर पिंडदान करने का शास्त्रोक्त विधान है।

चौपाई —

विश्वनाथ मम नाथ पुरारी,

त्रिभुवन महिमा विदित तुम्हारी।

(रा०च०मानस० बा०काण्ड१०६)

श्रीरामचरितमानस का पाठ करते समय अचानक इस चौ० के चरणांश पर नजरें सहसा ठिठक जाती है। तब काशी के अधिष्ठाता भगवान विश्वनाथ का स्वरूप काशी की महिमा उसकी अलमस्त शाही फकीराना अंदाज की जीवन शैली तथा काशी का प्राचीन इतिहास हमारी स्मृतियों में सजीव हो झांक उठता है।

ये वही काशी है, जिसकी आत्मा, मिट्टी तथा जीवन शैली में अध्यात्म गहराई से रचा बसा है। यहाँ की गलियों में बसे मंदिरों, मस्जिदों, गुरद्वारों, गिरजाघरों से उठती धूप, दीप, लोहबान, फूलो, अगरबत्तियों आदि की सुगंध तथा पवित्र मन से की गई पूजा आराधना घंटों घड़ियालों की ध्वनि वेद ऋचाओं का पाठ, मस्जिदों के परकोटो से आती अजान की ध्वनि, यहाँ की फक्कड़पन भरी जीवन शैली वाली फिज़ा में अमृत वर्षा करती कानों में मिठास घोल जाती है। गंगा घाटों के उपर मंडराते प्रवासी पक्षियों के झुंड तथा मस्ज़िदों के परकोटे पर दाना चुगते परिंदो की जमातें, जाति धर्म के झगड़ो से परे प्यार की बोली, भाषा समझने वाले जीव उन्मुक्त गगन में पंख  पसारे सिर के उपर गुजरते है तो बहुत कुछ कह जाते है। वे कभी मंदिर मस्जिद में भेद नहीं मानते।

वहीं पर गंगा की धारा पर स्वछंद अठखेलियां करती, विचरती  रंग बिरंगी नावें सहजता से आकाश में उड़ने वाली  पतंगो का भ्रम पैदा कर देती है। ऐसा लगता है कि रंग-बिरंगी पतंगों से आच्छादित आकाशगंगा धरती पर उतर आई हो। वहीं उन नावों में सवार  यात्री समूहों से उठने वाली भक्ति रस से सराबोर लोक धुनों पर आधारित स्वर लहरियां बरबस ही लोगों के ध्यानाकर्षण का केंद्र ‌बिंदु बन जाती है।

वे ध्वनियां जब कर्णपटल से टकराती है, तब मन के तार झंकृत करती हुई दिल में उतर जाती हैं। यहाँ की प्राचीन सभ्यता आज भी अपने आप में ‌इंसानियत का दामन थामे शांति पूर्ण सौहार्द के वातावरण का सृजन करती है।

यही कारण है कि आज भी हिंदू धर्मावलंबी मोक्षकामना लिए तथा अन्य लोग शांति की चाह लेकर काशी की जीवन पद्धति समझने के लिए आते हैं और अपने जीवन के अनमोल क्षण काशी को समर्पित करना चाहते हैं। कुछ तो मोक्ष की चाहत में यहीं के होकर रह जाते हैं।

श्री रामचरितमानस जिसकी रचना संत तुलसीदास जी ने काशी की गोद में बैठ कर की थी, काशी की महिमा लिखते हुए कहते हैं।

सोरठा—

मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खान अघ हानि कर।

जहँ बस संभु भवानि सो कासी सेइअ कस न॥

जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय।

तेहि न भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस॥

(रा०च०मानस किष्किंधा—२)

अर्थात् जो जन्म के बंधनों से मुक्ति देती है, ज्ञान की खान है पापों का नाश करने वाली है, उस काशी का सेवन क्यों न करें। जब काल कूट बिष के प्रभाव से सृष्टि का जीवन जल रहा था, उस विष को लोक हित में  जिसने पिया हो, ऐ मूढ़ मतिमंद इस शिव के समान दूसरा कौन कृपालु है जिसके लिए तूं अन्यत्र भटक रहा है, वैसे काशी और काशी के नाथ विश्वनाथ का इतिहास युगों-युगों पुराना है, ऐसा विद्वानों तथा पुराणों का मत है। लेकिन मेरा अपना मानना है कि काशी गंगा से भी अतिप्राचीन इतिहास के कालखंड का हिस्सा है। पौराणिक काल की गंगा अवतरण का किस्सा तो राजा भगीरथ के भगीरथ प्रयास का परिणाम है, लेकिन उनके कई पीढ़ी पूर्व उनके पूर्वज काशी आकर सत्यपथ का अनुसरण कर खुद को डोमराजा के हाथ बेच चुके थे। यह तथ्य पौराणिक कथाओं के अध्ययन से  उद्घाटित होता है। इसकी अपनी अलग ही सांस्कृतिक विरासत तथा समृद्धशाली जीवन शैली है। जहां के लोग कुछ पाने नहीं कुछ देने का भाव रखते हैं।

ये वही काशी है जहां की गरिमा तथा मर्यादा की रक्षा में विरक्तिपूर्ण त्यागमयी जीवन शैली अपनाकर नित्य उच्च आदर्शो के नये किर्तिमान गढ़ते संत समाज के दर्शन किए जा सकते हैं। इसी जीवन क्रम में शंकराचार्य, संत रविदास, संत कबीर दास, संत तुलसीदास, पं मदन मोहन मालवीय, मीरा, झांसी की रानी (मनु), भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, चंद्रशेखर आजाद के त्याग तपस्या, भक्ति तथा साहित्य साधना के कर्मों के इतिहास सिमटे भरे पड़े हैं, जो काशी को गरिमामयी गौरव प्रदान करते हैं तथा काशी की गरिमा में चार चांद लगा देते हैं।

शेष क्रमशः अगले अंक में ——-

© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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