श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी का विशेष आलेख  “रक्तदान । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – रक्तदान

रक्तदान के संबंध में  विचारणीय प्रश्न यह है कि – स्वैक्षिक रक्तदान क्यों ?

दान एक आदर्श जीवन वृत्ति है जो मानव को लोक कल्याण हेतु प्रेरित करती है, जिसके बहुत सारे आयाम तथा स्वरूप है।  इन्हें याचक की आवश्यकता के अनुसार दिया जाता है जैसे भूखे को अन्नदान, प्यासे को जलदान,  नंगे बदन को वस्त्रदान। उसी प्रकार मृत्यु शै य्या पर पडे़ जीवन की आस में मौत से जूझ रहे व्यक्ति को अंग दान तथा रक्त दान की आवश्यकता पड़ती है।  रक्तदान तथा अपने परिजनों की मृत्यु के पश्चात  अंग दान द्वारा हम किसी की जान बचा कर नर से नारायण की श्रेणी में जा सकते हैं।

अपने परिजनों के नेत्रों को किसी की आंखों में संरक्षित उस नेत्रज्योति को जो मानव को ईश्वरीय उपहार में मिली है को  लंबे समय तक दूसरों की आंखो में सुरक्षित कर सकते हैं। इससे ज़रूरत मंद नेत्रहीन तो दुनियां देखेगा हमें भी अपने परिजनों की आंखों के जीवित होने का एहसास बना रहेगा।

आज के इस आधुनिक युग में दुर्घटना, बिमारी तथा युद्ध के समय घायल अवस्था में मानव शरीर से अत्यधिक रक्तस्राव के चलते मानव अस्पतालों में मृत्युशैया पर पड़ा मृत्यु से  जूझ रहा होता है, उस समय उसके शरीर को रक्त की अति आवश्यकता पड़ती है। इसके अभाव में व्यक्ति की जान जा सकती है। रक्तदाताओं द्वारा दान किए गये रक्त  के प्रत्येक बूंद की कीमत का पता उसी समय चलता है। रक्तदान से किसी भी व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है। जिस अनुपात में रक्तकी जरूरत है उस अनुपात में आज  रक्त की उपलब्धता नहीं है। आज भी दुर्घटना में घायलों मरीजों के परिजनों अथवा रक्ताल्पता से जूझ रहे बीमारों के परिजनों को उसके ग्रुप के रक्त के लिये भटकते हुए, लाइन में लगते छटपटाते देखा जा सकता है। उस समय यदि रक्त की सहज सुलभता हो और समय से उपलब्ध हो तो किसी का जीवन आसानी से बचाना संभव हो सकता है इन्हीं उद्देश्यों को पूरा करने के लिए रक्तकोष बैंकों की स्थापना की गई।

स्वैक्षिक रक्तदान में बाधायें –

स्वैक्षिक रक्तदान में सबसे ज्यादा बाधक अज्ञानता तथा जनचेतना का अभाव है। संवेदनशीलता का अभाव तथा तमाम प्रकार की भ्रांतियों से भी हमारा समाज ग्रस्त हैं। उन्हें दूर कर, युद्ध स्तर पर अभियान चला कर, विभिन्न प्रचार माध्यमों द्वारा रक्तदान के महत्व तथा उसके फायदे से लोगों को अवगत कराना होगा।  लोगों को समझा कर, जनचेतना पैदा कर, अपने अभियान से वैचारिक रूप से जोड़ना होगा। संवाद करना होगा,और इस बात को समझाना होगा कि आप द्वारा किया गया रक्तदान  अंततोगत्वा आप के समाज के ही तथा आप के ही परिजनों के काम आता है। जब हम मानसिक रूप से लोगों को अपने अभियान से जोड़ने में सफल होंगे तथा अपने अभियान को जनांदोलन का रूप दे पायेंगे तो निश्चित ही रक्तदाता समूहों की संख्या बढ़ेगी। रक्त का अभाव दूर कर हम किसी को जीवन दान देने में सफल होंगे। स्वैक्षिक रक्तदान की महत्ता का ज्ञान करा सकेंगे।

रक्तदान से होने वाले फायदे –

जब हम रक्तदान करते हैं तो हमें दोहरा फायदा होता है, प्रथम तो हमारा रक्त हमारे समाज  के किसी परिजन की प्राण रक्षा करता है, दूसरा जब हमारे शरीर से रक्त दान के रूप में रक्त बाहर निकलता है तब हमारा शरीर कुछ समय बाद ही नया रक्त बना कर  शरीर को नये रक्त से भर देता है,  जिसके चलते शरीर को नइ स्फूर्ति तथा नवचेतना का आभास होता है और नया रक्त कोलेस्ट्राल तथा ब्लड शुगर से मुक्त होता है। जिसके चलते हम स्वस्थ्य जीवन जी सकते हैं। इस लिए प्रत्येक व्यक्ति को रक्तदाता समूहों से जोड़ कर,  किसी की जान बचाकर जीवन दाता के रूप में खुद को स्थापित कर अक्षय पुण्य ‌लाभ का भागी बनना चाहिए।

अंत में लोक मंगल कामना “सर्वेभवन्तु सुखिन:” के साथ  एक अनुरोध –  लोक मंगल हेतु इस आलेख को जन-जन तक पहुंचा इस मंगल कार्य में सहभागिता करें।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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