॥ मानस के मोती॥
☆ ॥ मानस में तुलसी का अभिव्यक्ति कौशल – भाग – 2 ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆
इसी प्रकार दूसरा प्रसंग जनकपुरी में पुष्पवाटिका का है, जहां राम-लक्ष्मण गुरु की आज्ञा से पुष्प लेने के लिए जाते हैं। वहां उसी समय सीता जी माता की आज्ञा से गौरि देवि के पूजन को जाती हैं। मंदिर उसी बाग के तालाब के किनारे है। वहां आकस्मिक रूप से राम ने सीता जी को देखा और मोहित हो गये तथा सीता जी ने सखी के कहने पर श्रीराम की एक झलक देखी। उनकी सौम्य सुन्दर मूर्ति को देखकर उन्हें उनके प्रति आकस्मिक रुचि व अनुराग पैदा हुआ। इस सांसारिक सत्य के मनोभावों को कवि ने इन पंक्तियों से भारतीय मर्यादा को रखते हुये कैसा सुन्दर चित्रित किया है? संकेतों का आनंद लीजिये। (आज का उच्छं्रखल व्यवहार जो देखा जाता है उससे तुलना करते हुये देखिये)- राम लक्ष्मण से सीता को देखकर कहते हैं-
तात जनक तनया यह सोई धनुष यज्ञ जेहिकारण होई।
पूजन गौरि सखी लै आई, करत प्रकाश फिरई फुलवाई।
करत बतकही अनुज सन मन सियरूप लोभान।
मुख सरोज मकरंद छवि करइ मधुप इव पान॥
सीताजी ने भी रामजी के दर्शन सखी के द्वारा कराये जाने पर किये-
लता ओट जब सखिन लखाये स्यामल गौर किसोर सुहाये।
देखि रूप लोचन ललचाने हरषे जनु निज निधि पहिचाने॥
लोचन मन रामहि उर आनी, दीन्हे पलक कपाट सयानी।
जब सिय सखिन्ह प्रेमबस जानी, कहि न सकहि कछु मन सकुचानी॥
केहरि कटि पटपीत धर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान॥
देखन मिस मृग विहग तरु फिरइ बहोरि बहोरि।
निरखि निरखि रघुबीर छवि बाढ़इ प्रीति न थोरि।
सीता मंदिर में पूजा करके गौरी माता से मन में ही प्रार्थना करती हैं-
मोर मनोरथ जानहु जीके। बसहु सदा उरपुर सबही के।
कीन्हेऊ प्रकट न कारण तेहीं। अस कह चरण गहे बैदेही॥
देवि ने प्रार्थना स्वीकार की-
विनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरत मुसुकानी।
सादर सिय प्रसाद सिर धरऊ। बोली गौरि हरषु हिय भरऊ॥
सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजहि मनकामना तुम्हारी।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाय कहि।
मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे॥
बिना किसी वार्तालाप के मौन ही मन के भाव बड़ी शालीनता से कवि ने दोनों श्रीराम और सीताजी के व्यक्त करते हुये शुभ-शकुनों के संकेतों से मधुर प्रेमभावों को प्रकट किया है।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈