मानस के मोती

☆ ॥ मानस में तुलसी का अभिव्यक्ति कौशल – भाग – 4 ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆

सीता जी से वाटिका में मिलने पर हनुमान जी ने माता को अपना परिचय दिया। पहले कभी देखा नहीं था, इसलिये विश्वास दिलाने को वे राम के दूत हैं उन्हें राम द्वारा परिचय के लिये दी गई रामनाम अंकित मुद्रिका प्रस्तुत की। सीता जी ने उन पर विश्वास कर उन्हें रामदूत माना और आशीष दिया।

वहीं अशोक वाटिका में रावन ने सेना सहित आकर सीता जी को डराया-धमकाया और एक माह के भीतर उसकी इच्छा की पूर्ति के लिये समय दे चला गया। सीता जी अत्यंत व्याकुल हो मन से अपने को नष्ट कर डालने के लिये अपनी चौकसी में तैनात त्रिजटा राक्षसी से अग्नि ला देने की इच्छा व्यक्त करती हैं। वह उत्तर देती हैं कि रात अधिक हो गई है, उस समय कहीं अग्नि नहीं मिलेगी। ऐसा कहकर चली जाती है, परन्तु सीता को ढांढस बंधाने के लिये उसने अन्य राक्षसियां जो वहां पहरे पर तैनात थीं, को अपना सपना सुनाती हैं कि उसने स्वप्न देखा है कि रावण गधे पर बैठा हुआ दक्षिण दिशा की ओर जाते देखा गया है। इस सपने से संकेत दिया है कि रावण का शीघ्र ही विनाश होगा और श्रीराम सीता जी के ले जाने के लिये शीध्र ही लंका में आयेंगे। अत: ये सीता को डरायें-धमकायें नहीं तभी उनका सबका हित होगा।

सपने वानर लंका जारी, जातुधान सेना सब मारी।

खर आरुढ़ नगन दससीसा, मुंडित सिर खंडित भुज बीसा॥

एहि विधि सो दक्षिण दिसि जाई, लंका मनहुं विभीषण पाई।

नगर फिरी रघुबीर दोहई, तब प्रभु सीता बोलि पठाई॥

यह सपना मैं कहऊं पुकारी, होइहिं सत्य गये दिन चारी।

तासु वचन सुनि ते सब डरीं, जनकसुता के चरनन्हि परी॥

इस प्रकार के अनेक प्रसंगों का वर्णन मानस में तुलसी ने किया है। सबका विस्तार से उल्लेख करना इस लेख में कठिन इसलिये है क्योंकि उससे लेख की सीमा का विस्तार बहुत होगा। फिर भी कुछ और का नामोल्लेख नीचे किया जा रहा है। जिसे पाठक मूल मानस में पढक़र समझ सकते हैं तथा तुलसी के अभिव्यक्ति कौशल का आनंद ले सकते हैं। ऐसे अन्य प्रसंग हैं- (1) भरत और शत्रुघ्न का ननिहाल से बुलवाये जाने पर मार्ग में उन्हें अपशकुनों का अनुभव होना। (2) सीता जी की खोज में लंका जाते समय हनुमान जी को अनेकों शुभ शकुनों का होना। (3) लंका में मंदोदरी और रावन को युद्ध के समय अनेकों अशुभों का आभास या अनुभव होना। (4) लंका में विजय प्राप्त कर बनवास की समाप्ति पर राम के लौटने पर भरतजी को माताओं तथा आयोध्यावासियों को मन में शुभ भावों का उदित होना, मन का प्रफुल्लित होना, मौसम का अच्छा हो जाना। (5) शंकर जी के मन को काम के द्वारा क्षुब्ध किये जाने पर सारी प्रकृति और जन जीवन में कामभाव का प्रादुर्भाव इसी प्रकार कई अन्य प्रसंगों में तुलसी का साहित्यिक अभिव्यक्ति कौशल स्पष्ट परिलक्षित होता है।

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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