॥ मानस के मोती॥
☆ ॥ मानस में तुलसी के अनुपम उपदेश – भाग – 1 ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆
वीरगाथा काल की समाप्ति पर हिन्दी कविता राजाश्रयी क्षेत्र से हटकर जन जीवन की ओर मुड़ी और भक्ति भावना की ओर प्रवृत्त हुई। विदेशी आक्रमणों की देश में बाढ़ आ गई और जन जीवन दुखी तथा त्रस्त हो गया। दुर्दिनों में सबको ईश्वर की याद आती है। ईश्वर ही कठिन समय में त्राता और संरक्षक के रूप में दिखाई देता है। इसीलिये ऐसे समय में भक्ति की भावना जागृत हुई। राम और कृष्ण की भक्ति भावना बढ़ी और रामभक्ति तथा कृष्ण भक्ति की धारा प्रवाहित हुई। राम की भक्ति में जिन कवियों ने रचनायें की उनमें महात्मा तुलसीदास और कृष्णभक्ति के कवियों में सूरदास अद्वितीय हैं। तुलसीदास जी ने विक्रम संवत् 1631 में रामनवमीं के दिन से अयोध्या में रामकथा का लिखना प्रारंभ किया जिसे रामचरितमानस नाम दिया गया। साहित्यकार की विचारधारा सदा अपने समय की परिस्थितियों से प्रभावित होती है। उस समय भारत में हिन्दू समाज दीनहीन अवस्था में था। अपनी धार्मिक और आर्थिक कठिनाइयों के कारण निराशा के गर्त में था। आडम्बरों की प्रधानता थी, जाति-पांति का भेदभाव था। सदाचार की समाज में कमी थी। शैव, वैष्णव, शाक्त मतों के प्रभाव से आपसी मतभेद और अलगाव थे। समाज में ढोंगी भक्तो ंकी बहुलता थी। सच्ची ईश्वर भक्ति का अभाव था। शिक्षा की कमी थी, अत: अधिक लोग निरक्षर थे और उन्हें अधिक ज्ञान की कमी थी। इसीलिये तुलसी दास ने अपने मानस में जनसाधारण की सरल भाषा में मानव जीवन को सुखी और समृद्ध बनाने नई राह दिखाने के लिये आदर्श प्रस्तुत किये। तुलसीदास जी ने अपने गुरु नरहरिदास से रामकथा सुनी थी। वाल्मीकि रामायण में रामकथा विस्तार से दी गई है। इसी में उन्होंने दुखी और निरीह समाज को उठाने अैर उसे जीवन-संबल देने को तेजस्वी मर्यादा पुरुषोत्तम राम की जीवन गाथा को सरल भाषा में प्रस्तुत करने का निश्चय कर रामचरितमानस की रचना की। राम में उन्हें एक चरित्रवान, दुष्टों का नाश करने वाला, सुख-समृद्धि का प्रदाता, नायक व सुयोग्य न्यायप्रिय राजा मिला। परिवार को एक प्रेमल आज्ञाकारी पुत्र, भाई तथा सुयोग्य पति दिखा।
शैव व वैष्णव पंथानुयायियों के मतभेदों को दूर कर समन्वयकर्ता मिला और भक्तों के मन को शांति देने वाला सर्वजन हितकारी देवता मिल गया। इसी दृष्टि से इन्होंने राम को शिव का उपासक और शिव को राम का उपासक बताया इस रूप में एक समन्वयकर्ता भी मिल गया जो समाज में एक नई चेतना देने में सरलता से मान्य हो गया।
क्रमशः…
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
प्रस्तु आलेख में सरल धारा प्रवाह में श्री रामचरितमानस में,तत्कालीन परिस्थितियों, तथा कथानक नायक का चित्रण जो मानवीय सद्गुणों दया ममता प्रेम समाज के प्रति दायित्व बोध जैसा गुण एक राजा को देवता की श्रेणी में स्थापित कर देता है।एक रचनाधर्मी जो देखता है वहीं लिखता है या यूं कह लें कि वह सामाजिक गतिविधियों का दर्पण होता है, रचना तो हृदय का स्वतस्फूर्त उद्गार होती जिसमें हृदय के भाव स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। तभी तो किसी कवि ने लिखा है कि वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान। उमड़ कर आंखों से कविता बही होगी… Read more »