॥ मार्गदर्शक चिंतन

☆ ॥ चिन्तन का अर्थ ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆

चिन्तन का अर्थ है किसी एक विषय पर गम्भीरता से गहन सोच विचार करना। मनुष्य छोटे बड़े जो भी कार्य करता है, उसके पहले उसे सोचना, विचारना अवश्य ही पड़ता है, क्योंकि जो भी काम किया जाता है, उसके भले या बुरे कुछ परिणाम अवश्य होते हैं। भले उद्देश्य को ध्यान में रखकर जो कार्य किये जाते हैं, उनके परिणाम अच्छे होते हैं और कर्ता को भी उनका हित लाभ होता है किन्तु इसके विपरीत जो कार्य किये जाते हैं उनका परिणाम अहितकारी होता है और कर्ता के लिये अपयशकारी होता है। अत: नीति नियम यही है कि हर काम को करने से पहले उसकी रीति और परिणाम को ध्यान में रख विचार किया जावे। विचार से ही योजना बनती है और योजनाबद्ध तरीके से ही कार्य संपन्न होता है। ऐसा कार्य वांच्छित फलदायी होता है। चोर, डाकू, लुटेरे भी सोच विचार कर दुष्टता के अनैतिक कार्य करते हैं। समझदार अन्य लोगों की तो बात ही क्या है।

चिन्तन या सोच विचार का जीवन में बड़ा महत्व है। विचार से ही कर्म को जनम मिलता है। कर्म ही परिणाम देते हैं। अत: जो जैसा काम करता है वैसा ही फल पाता है। इसीलिये कहा है- ‘जो जैसी करनी करे सो वैसो फल पाय’। परन्तु फिर भी दैनिक जीवन में बहुत से लोग विचारों को जो महत्व देना चाहिये वह नहीं देते। इसी से बहुत सी बातें बिगड़ती हैं। आपसी बैरभाव, विद्वेष और लड़ाई झगड़े बिना विचार के सहसा किये गये कार्यों के परिणाम हैं। जो व्यक्ति जितना बड़ा और प्रभाव क्षेत्र उसका जितना विशाल होता है उसके द्वारा किये गये कार्यों का प्रभाव भी उतने ही विशाल क्षेत्र पर पड़ता है। उसका परिणाम भी एक दो व्यक्ति या परिवार तक ही को नहीं भोगना पड़ता वरन आने वाली पीढिय़ों को सदियों तक भोगना पड़ता है। हमारे देश में काश्मीर की समस्या ऐसे ही सहसा बिना गंभीर चिन्तन के उठाये गये कदम का ही शायद दुखदायी परिणाम है।

कर्म ही मनुष्य के भाग्य का निर्माता है। व्यक्ति जैसा सोचता है, वैसा ही करता है। जो जैसा करता है वैसा ही बनता है और वैसा ही फल पाता है, जो उसके भविष्य को बनाता या बिगड़ता है। इसलिये कहा है- ‘बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय।’ एक क्षण की बिना विचार किये कार्य के द्वारा घटित घटना न जाने कितनों के धन-जन की हानि कर देती है। छोटी सी असावधानी बड़ी-बड़ी दुर्घटनाओं को जन्म दे देती है और अनेकों को भावी पीढिय़ों के विनाश के लिये पछताते रहने को विवश कर जाती है।

इसलिये विचार या चिन्तन को उचित महत्व दिया जाना चाहिये। सही सोच विचार से किये जाने वाले कार्यों से ही हितकर परिणामों की आशा की जा सकती है। तभी व्यक्ति परिवार, समाज और राष्ट्र का उद्धार संभव हो सकता है। विचार ही समाज या देश के विकास या विनाश की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं। इतिहास इसका प्रमाण है। एक नहीं अनेक उदाहरण हैं, जहां शासक के उचित या अनुचित विचारों ने संबंधित देश के भविष्य को नष्ट किया या सजाया संवारा है। भारत के इतिहास से सम्राट अशोक इसका एक प्रमुख और सुस्पष्ट उदाहरण है। जिसके एक चिनतन ने कलिंग प्रदेश में प्रचण्ड युद्ध और विनाश के ताण्डव को जन्म दिया और युद्ध की विभीषिका से तंग आकर जब उसने अपने कृत्यों पर पुनर्विचार किया तो उसके नये चिन्तन ने उसे शांति का अग्रदूत बनाकर बौद्ध धर्म का अनुशासित महान अप्रतिम प्रचारक बना दिया।

 © प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

 ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, म.प्र. भारत पिन ४६२०२३ मो ७०००३७५७९८ [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments