॥ मार्गदर्शक चिंतन॥
☆ ॥ मन का तन पर प्रभाव ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆
‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ – यह पुरानी कहावत है। आशय है कि यदि मन प्रसन्न है तो गंगा का सुख घर में ही है। स्नान और शांति की खोज में गंगा जी तक किसी तीर्थस्थल तक जाने की आवश्यकता नहीं होती। जीवन में सभी का व्यक्तिगत अनुभव है कि मन जब खुश रहता है तो सारा वातावरण सुहाना दिखता है और मन की खिन्नता में कुछ भी अच्छा नहीं लगता। खाना, पीना, गाना, बोलना, बताना सभी के प्रति विरक्ति हो जाती है और एक उदासी घेर लेती है। मानव शरीर तो आत्मा का आवरण या वाहन मात्र है। प्रमुख तो वह चेतन आत्मा है जो व्यक्ति को संचालित करती है। सोचती-विचारती है, संकल्प करती है और फिर शरीर को काम के लिये प्रेरित करती है तथा इच्छानुसार कार्य संपादित कराती व फल प्राप्ति कराती है। मन की खुशी से ही तन की खुशी है, तन मन का अनुगमनकर्ता है। मानसिक भावनाओं का शारीरिक क्रियाकलापों पर गहरा असर होता है। यदि किसी ने वार्तालाप के प्रसंग में अपशब्द कहे तो मन उससे दुखी हो जाता है। परिणाम स्वरूप शरीर शिथिल होता है, किसी कार्य को करने से रुचि हट जाती है। व्यक्ति कहता है कि कुछ करने का मूड नहीं है। जीवन में हर क्षेत्र में हमेशा मन का तन से यही गहरा संबंध है, इसलिये एक की अस्वस्थता दूसरे को प्रभावित करती है। यदि शरीर को आकस्मिक चोट लग जाती है या बुखार हो जाता है तो मन की आकुलता बढ़ जाती है। किसी मानसिक कार्य को संपादित करने में मन नहीं लगता। व्यक्ति के दैनिक व्यवहार भी प्रभावित होते हैं।
मन का तन पर और तन का मन पर भारी प्रभाव पड़ता है। बड़े-बड़े कार्य यह तन, मन की खुशी के लिये प्रसन्नतापूर्वक उत्साह और उमंग से संपन्न कर डालता है और विपरीत परिस्थिति में कुछ भी करने में रुचि नहीं रखता। इसलिये कहा है ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।’ यदि मन किसी संकल्प को पूरा करने को तैयार हैं तो आत्मविश्वास बढ़ा रहता है और कठिनाइयों पर सरलता से विजय पा ली जाती है, परन्तु यदि मन का संकल्प कमजोर है, विचारों में ढीलापन है तो हर युद्ध में जीत मुश्किल है। हार का कारण मन के संकल्प की कमजोरी ही होती है। यदि मन सबल और स्वस्थ है तो कार्य संपादन में साधनों की कमी खटकती नहीं और यदि मन अस्वस्थ है तो सारे साधनों के रहते भी सफलता हाथ से फिसल जाती है। मनोभावों की छाया तन पर स्पष्ट दिखाई देती है। रंगमंच पर अभिनेता के मन में जो भाव प्रधान रूप से उत्पन्न होते हैं उसके चेहरे और हाव भावों में अभिनय के रूप में स्पष्ट झलकते हैं और दर्शक उनकी प्रशंसा करते हैं। अत: मन का तन पर भारी प्रभाव पड़ता है। अब तो भेषज विज्ञान भी यह मानने लगा है कि शरीर की रुग्णता को दूर करने में मन की आशावादिता और प्रसन्नता का बड़ा हाथ होता है। मन से स्वस्थ मरीज को डॉक्टरों द्वारा दी गई दवायें उसे जल्दी स्वस्थ कर देती हैं जबकि अन्यों को अधिक समय लगता है पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्ति में। मन और तन का पारस्परिक गहरा नाता है।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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