॥ मानस के मोती॥
☆ ॥ मानस का एक सशक्त नारी पात्र मंथरा॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆
श्री राम की जीवन सरिता को नया मोड़ देने वाली -“मंथरा”
प्रत्येक व्यक्ति का जीवन जन्म से मृत्यु पर्यन्त-एक सरिता की भाँति कालचक्र से संचालित आगे बढ़ता रहता है। जो जन्म पाते हैं उनमें से बहुत बड़ी संख्या में अधिकांश तो अज्ञात जलधाराओं की भाँति बहकर समय के रेगिस्तान में निरोहित हो जाते हैं, किन्तु कुछ कालजयी जीवन सरितायें पावनी गंगा की भाँति विश्व विख्यात हो युग युग तक कल्मषहारिणी, जनकल्याणकारिणी तृप्ति और मुक्ति दायिनी पुण्य सलिला गंगा सी उभर कर चिर नवी बनी रहती हैं। वे जन भावना की पूजा का केन्द्र बिन्दु बन जाती हैं। परन्तु इस उपलब्धि के लिए कोई घटना महत्वपूर्ण होती है। जैसे गंगाजी का महात्मा भगीरथ के द्वारा धराधाम पर स्वर्ग से लाये जाने के लिए उनका घोर तप और सतत प्रयत्न। राम कथा में भी राम की जीवन सरिता को नई दिशा में आकस्मिक मोड़ देने वाली है कैके यी की सेविका मंथरा। वैसे तो प्रत्यक्षत: विमाता कैकेयी को उसके द्वारा राजा दशरथ से दो वरदान (1) भरत को राजतिलक और (2) राम का चौदह वर्षों के लिए वनगमन माँगकर अयोध्या के उल्लासमय वातावरण को विषादमय बनाने तथा पुत्र वियोग में राजा दशरथ के मरण का प्रमुख कारण कहा जाता है किन्तु रानी कैकेयी जो वरदान माँगने के पूर्व तक पति की प्रिय पत्नी और स्नेहमयी माता थी, के सोच में आकस्मिक परिवर्तन लाने तथा उसमें स्वार्थ व सौतिया डाह की ज्वाला भडक़ाने का काम तो वास्तव में उसकी मुँह लगी चुगलखोर और अविवेक में अंधी, कुटिल दासी मंथरा ने किया था। अत: उसे मानस के सशक्त नारी पात्र के रूप में देखा जाना अनुचित न होगा क्योंकि उसी के गहन प्रभाव से प्रभावित हों कैकेयी ने उस घटनाक्रम को जन्म दिया जिसने रामकथा को सर्वथा नया मोड़ दे दिया। यदि राम का यथा परम्परा राजतिलक होता तो शायद उनके द्वारा वे कार्य न तो संपादित हो सकते जो उन्होंने चौदह वर्षों के अपने वनवास के काल में किये और न शायद उन्हें वह अपार ख्याति ही प्राप्त हो सकी होती जो आज उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राजाराम के रूप में जनजन के मृदुल मनोसिहासन पर आसीन होने से सहज संभव हो सकी है।
वह मंथरा जिसने प्रेमल विमाता कैकेयी के मन में एक तूफान उठा कर उसके व्यवहार में आकस्मिक घोर परिवर्तन कर दिया और सिया-राम की ही जीवन सरिता की धारा को ही नहीं अयोध्या के राज परिवार और समस्त तत्कालीन भारत के इतिहास को ही एक झटके में बदल दिया निश्चित रूप से कुटिलतापूर्ण चरित्र वाली मानस की एक सशक्त पात्र है। क्योंकि बिना मंथरा की उपस्थिति के राम की जीवन गाथा का स्वरूप ही कुछ भिन्न होता।
रामचरित मानस में ‘मंथराÓ रानी कैकेयी की निजी मुँहलगी विश्वस्त सेविका है जो कैकेयी के राजा दशरथ के साथ विवाह पर उसके पीहर से उनके साथ आई थी। अत: स्वाभाविक रूप से वह कैकेयी की हितरक्षिका व संरक्षिका है। रानी के मनोभावों की निकट जानकार, रानी को अपनी बात खुल कर कह सकने वाली, कुटिल बुद्धि वाली, व्यवहार कुशल वाचाल, घरफोड़ू स्वभाव की, शरीरयष्टि में कुबड़ी, अदूरदर्शी प्रेम का दिखावा करने वाली, अंपढ़, कपटी, कुटनी सेविका है। उसी की सलाह पर विश्वास करने से कैकेयी ने ऐसा हठ किया जिसमें सारा राज परिवार एक गहन शोक सागर में डूब गया और राम को राज्याधिकार प्राप्ति के स्थान पर चौदह वर्षों के लिए वनवास पर जाना पड़ा। अयोध्या कांड दोहा क्र. 12 से 23 के बीच के तुलसीदास जी ने उसके अभिनय का जो चित्र प्रस्तुत किया है उससे स्पष्ट है कि मंथरा ही सारी भावी घटनाओं का बीज वपन करने वाली अहेरिन है जिसकी बुद्धि को देवताओं की प्रार्थना पर मानस में वर्णन के अनुसार शारदा ने कुमति दे दूषित कर दिया था-
नाम मंथरा मंद मति चेरी कैकेई केरि,
अजस पिटारी ताहि करि गई गिरा मति फेरि।
संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
मंथरा का कैकेयी के पास जाना, अपना आक्रोश और खिन्नता प्रदर्शित करते हुए गहरी साँसे भरना, रानी के द्वारा उसका कारण पूँछने पर कुछ न बोलना, रानी के द्वारा यह पूँछने पर कि बात क्या है? सब कुशलता तो है? यह उत्तर देना कि आज राम की कुशलता के सिवा और किसकी कुशलता संभव है। आज उनका राजतिलक होने वाला है। सारा नगर सजाया जा रहा है उत्सव के लिये। कैकेयी के यह कहने पर कि यह तो खुशी की बात है। मुझे राम अत्यधिक प्रिय हैं और वह भी सब पर समान प्रेम रखते हैं। कौशल्या माता और मुझमें कोई भेद नहीं रखते। रघुकुल में यही प्रथा है कि बड़ा राजकुमार राजगद्ïदी का अधिकारी होता है और सब छोटे भाई उसका सहयोग करते तथा प्रेम से उसका अनुगमन करते हैं। फिर राम तो सब प्रकार सुयोग्य हैं और भाइयों पर उनका अगाध प्रेम है अत: उनका राजतिलक तो हम सबके के लिए खुशी की बात है। इस बात पर तू क्यों जली जा रही है? घर फोडू़ भेद की बात क्यों करती है अगर फिर ऐसा कहा तो तेरी जीभ कटवा दूँगी। आखिर बात क्या है? तुझे बुरा क्यों लग रहा है? तुझे भरत की कसम है सच बता।
मंथरा ने कहा-एक बार कहने पर ही तो मुझे यह सब सुनना पड़ रहा है, अब और क्या सुनने को बाकी रहा। अब आगे भला क्या कहूँ। यह मेरा ही दुर्भाग्य है कि जो मैं आपका भला चाहती हूँ आपका अहित होते मुझसे देखा नहीं जाता और आपके हित की बात कहना चाहती हूँ तो आपसे ही गाली खाती हूँ, बुरी कही जाती हूँ, घरफोड़ू कही जाती हूँ। मैं अब आगे से मुँह देखी बात ही कहा कहूँगी जिससे आप खुश रहें। मुझे क्या करना है-
कोई नृप होय हमें का हानी-चेरी छाँडि न होउब रानी॥
उसकी ऐसी चिकनी चुपड़ी मर्म भरी बातें सुन कैकेयी ने उसके प्रति नरम होते हुये उसकी बातों में सचाई का कुछ अंश होने की संभावना देखते हुए, आग्रह करते हुए कहा-सच तो बता ऐसी बात क्या हो गई जो तू व्यर्थ दुखी हो गई? मंथरा ने तब कैकेयी की नरमी को देखते हुए कपटपूर्ण मीठी बात कही- ”मुझे अब कहने में डर लगता है। तुमने कहा राम-सिया तुम्हें बहुत प्यारे हैं। बात तो सही है। प्यारे तो हम सबको हैं पर तुम बहुत भोली हो। पति का प्यार पाकर खुशी में भूली हो। तुम समझती हो राजा तुम्हारे वश में हैं। और सब ठीक-ठाक है। राजा भरत तथा शत्रुघ्न के ननिहाल में रहते राम का राज्याभिषेक रच रहे हैं। कौशल्या ने भी बड़ी चतुराई से, प्रपंच रच तिलक के लिए ऐसी तिथि निकलवाई है। कौशल्या के मन में तुमसे सौतिया डाह है। वह जानती है कि राजा तुमको ज्यादा प्यार करते हैं। उसे यह खलता है। समय बदलने पर मित्र भी शत्रु हो जाते हैं। जब तक कमल पानी भरे तालाब में रहता है सूरज भी उसको खिलाता है पर जब पानी सूख जाता है तो वही सूरज उसे जला डालता है (नष्ट कर देता है) राम के राजा हो जाने पर, उनसे वह प्रेम जो आज तुम्हें मिल रहा है संभव नहीं हैं। कौशल्या राजमाता होकर तुम्हारी जड़ें उखाड़ फेंकेगी। इसीलिए असलियत को समझो और अपने पुत्र भरत की समय रहते सुरक्षा का सही प्रत्यत्न करो।ÓÓ यह सुन कैकेयी को लगा कि वह बिलकुल अंधेरे में थी मंथरा ने प्रकाश की किरण दिखा, उसे डूबते को तिनके का सहारा सा देते हुए भविष्य की कठिनाई से बचाने का सही संकेत दिया है। कैकेयी को यह आभास होते ही उसने मंथरा को सहमकर समर्पण कर दिया। अब आगे वह अपने को कुछ भी सोचने, समझने और करने में असमर्थ कह कर क्या करे इसकी सलाह देने को कहा।
मंथरा ने रानी की मनोदशा का पूरा लाभ लेते हुए उसे पूर्णत: अपने वश में लेकर तथा अनेकों सौतों के सौतों के प्रति किए गए व्यवहारों की कथायें सुनाकर और भयभीत करते हुए कहा-अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है। रातभर का समय है। तुम रात को कोपभवन में पहुँचो। राजा जब मनायें तब उनसे राम की शपथ दिलाकर, उनके द्वारा तुम्हें दिए गए दो वरदानों में जो तुम्हारी थाती हैं उनसे दो वचन ले लो-(1) अपने बेटे भरत को राजतिलक और (2) कौशल्या के पुत्र राम को चौदह वर्षों का वनवास। बस इससे ही बात बनेगी।
होहि अकाज आजु निशि बीते, बचन मोर प्रिय मानहु जी से।
इस सलाह पर कैकेयी ने उसे बड़ी समझदार व हितेषी मानकर उसकी सराहना की
तोहि सम हित न मोर संसारा, बहे जात कर भयेसि अधारा॥
जो विधि पुरब मनोरथ काली, करों तोहि चखपूतरि आली॥
मंथरा की इसी सारी कपट योजना का परिणाम है रामचरित मानस में वर्णित राम की जीवन गाथा। अत: मंथरा के परामर्श ने राम की जीवन सरिता की धारा को मोड़ कर एक सशक्त नारी पात्र की भूमिका निभाई है।
॥ को न कुसंगति पाई नसाई, रह इन नीच मते चतुराई॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈