॥ मार्गदर्शक चिंतन॥
☆ ॥ आदर्श के अनुकरण की आवश्यकता ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆
जीवन को सही दिशा में विकसित करने के लिये एक आदर्श की आवश्यकता होती है। सामने कोई आदर्श रहने से उसका अनुकरण कर चलने से कोई निश्चित उपलब्धि पाई जा सकती है, मार्ग सरल हो जाता है। जैसे कोई चित्रकार सामने कोई मॉडल रख उसकी अनुकृति बनाना सरल पाता है वैसे ही जीवन को किसी निर्धारित सांचें में ढालना आदर्श का अनुकरण कर बढऩा आसान होता है। स्वरुचि के अनुसार जिस किसी भी क्षेत्र में विकास करना हो, उस क्षेत्र के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के जीवन विकास क्रम को समझना और उसका क्रमिक अनुकरण करना उचित होता है। किसी भी लक्ष्य को पाने के लिये एक सफल मार्गदर्शक चाहिये। उसकी प्रेरणा और अनुकरण से उस पथ पर चलना और आने वाली कठिनाइयों से जूझ सकना आसान हो जाता है। शिक्षा, समाजसेवा, व्यवसाय, व्यापार, विज्ञान, धर्म, अध्यात्म, योग, भक्ति, राजनीति या चिकित्सा यहां तक कि खेल के क्षेत्र में भी मार्गदर्शन के लिये आदर्श का होना अच्छा है। यह विश्व विभिन्नताओं से भरा पड़ा है। आज हर क्षेत्र में विकास की संभावनायें हैं और आदर्श उपलब्ध हैं। सुयोग्य आदर्श की जानकारी विभिन्न स्रोतों से प्राप्त की जा सकती है। स्वत: के ज्ञान और खोज से अखबारों से टीवी से पत्र-पत्रिकाओं से और सत्साहित्य से। इसीलिये साहित्य को जीवनोत्कर्ष के लिये सहायक कहा जाता है। पुस्तकों ने अनेकों के विकास के दरवाजे खोले हैं। पुस्तकें सबकी परम मित्र हैं। अनेकों सफल महापुरुषों ने अपने पूर्ववर्ती नायकों के जीवन चरित्र पुस्तकों में पढक़र अपने रास्ते चुने हैं और सत्य अहिंसा, जनसेवा, करुणा के भावों को जगाकर उनका अनुकरण करने का संकल्प कर जीवन को सजाया और संवारा है तथा खुद महान बन सके हैं। आदर्श का चित्र मन में बस जाने से उसके प्रति श्रद्धाभाव वैसे ही उत्पन्न हो जाता है जैसे भक्त के मन में भगवान के प्रति अनुरक्ति श्रद्धा और विश्वास। यही विश्वास सफलता देता है। कहा है- विश्वास: फलदायक:। विश्वास से ही भक्त को भगवान मिलते हैं। विश्वास और श्रद्धा से ही व्यक्ति को हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। हर उपासक के सामने जाने या अनजाने में भी कोई एक आदर्श तो होता ही है। आदर्श की प्रतिमा सतत प्रेरणा देती है। शक्ति भी देती है, जिससे लक्ष्य को पाया जाता है। हर एक के लिये उसके विश्वास और निष्ठा के अनुसार आदर्श अलग-अलग हो सकते हैं। एक ही आदर्श सभी के लिये आदर्श नहीं हो सकता। किसी के लिये आदर्श राम है तो किसी के आदर्श कृष्ण है और किसी के लिये शिव अथवा हनुमान जी। हर मनोदशा का जीवन में भिन्न आदर्श हो सकता है। एक ही व्यक्ति का एक परिस्थिति में कार्य संपादन का आदर्श एक हो सकता है और दूसरी परिस्थिति में कुछ अन्य। मूलत: आदर्श की आवश्यकता सफलता के लिये लक्ष्य को पाने के लिये होती है।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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