ई-अभिव्यक्ति -गांधी स्मृति विशेषांक-1 

श्री राकेश कुमार पालीवाल

 

(सुप्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक श्री राकेश कुमार पालीवाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है.  आप वर्तमान में महानिदेशक (आयकर), हैदराबाद के पद पर पदासीन हैं। गांधीवादी चिंतन के अतिरिक्त कई सुदूरवर्ती आदिवासी ग्रामों को आदर्श गांधीग्राम बनाने में आपका महत्वपूर्ण योगदान है। आपने कई पुस्तकें लिखी हैं जिनमें ‘कस्तूरबा और गाँधी की चार्जशीट’ तथा ‘गांधी : जीवन और विचार’ प्रमुख हैं। इस अवसर पर श्री राकेश कुमार पालीवाल जी का यह आलेख सामयिक एवं प्रासंगिक ही नहीं अपितु अनुकरणीय भी है.)

 

गांधी विचार की वर्तमान प्रासंगिकता

 

गांधी विचार की वर्तमान प्रासंगिकता पर जब भी कोई विचार विमर्श होता है मेरे जेहन में दो घटनाएं कौंधती हैं – एक गांधी द्वारा अपनी हत्या के कुछ दिन पहले दिया वह बयान जिसमें उन्होंने आजाद भारत में अपने दायित्वों और अधूरे कार्यो के बारे में बताया था, और दूसरी घटना 2004 की है जब मुझे एक आत्मीय वार्तालाप में बाबा आम्टे ने इस विषय पर अपने विचार बताए थे। इस लेख में सबसे पहले भूमिका के रूप में इन दो घटनाओं को ही दोहराना चाहता हूं क्योंकि इन दोनों घटनाओं से गांधी विचार की वर्तमान प्रासंगिकता समझने में मुझे बहुत मदद मिली है।

1947 में जब देश आजाद हुआ तब देशवासियों को ऐसा महसूस होने लगा था मानो अंग्रेजी शासन के कारण ही देश में तमाम समस्या थी और उनके जाते ही राम राज्य जैसी स्थिति हो जाएगी।हालांकि आजादी की पूर्व संध्या पर पंजाब और बंगाल के भयंकर साम्प्रदायिक दंगों ने आजादी की नई नींव की चूलें ही हिलाकर रख दी थी। गांधी ने इस हालत में दिल्ली में आजादी के महा जश्न में शिरकत करने की बजाय बंगाल में भड़के भयावह दंगों को रोकने को वरीयता दी थी। वे यह भी भांप रहे थे कि आजादी के बाद का भारत भी बहुत सारी समस्याओं से घिरा रहेगा इसीलिए उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस को भंग कर कांग्रेसियों को सलाह दी थी कि वे सत्ता का मोह छोड़कर देश सेवा के रचनात्मक कार्यों में लग जाएं। यह कमोबेश वही रचनात्मक कार्य थे जिन्हें गांधी और उनके सहयोगी स्वाधीनता संग्राम आंदोलन के दौरान बहुत साल से करते आए थे।

आजादी के समय भी अधूरे रह गए रचनात्मक कार्य गांधी को आजादी से भी ज्यादा प्रिय थे, इसीलिए वे अक्सर कहते थे कि आजादी के पहले देश की जनता को आजादी अक्षुण्ण रखने के लिए जागरूक करने की जरूरत है। इसी पृष्ठभूमि में  एक प्रश्न के उत्तर में गांधी ने कहा था कि आजादी के बाद भी हमें बहुत काम करना है क्योंकि अंग्रेजी शासन हटने से देश को केवल एक चौथाई (राजनीतिक) आजादी मिली है। अभी हमें देशवासियों के लिए तीन चौथाई आजादी अर्थात सामाजिक आजादी, आर्थिक आजादी और धार्मिक या आध्यात्मिक आजादी अर्जित करनी है। गांधी का इशारा समाज में फैली छुआछूत और जातिवाद, देश के गांवों में पसरी भयंकर गरीबी और विभिन्न धर्म और संप्रदायों के बीच फैली नफरत की आग की तरफ था।गांधी के इस कथन को ध्यान में रखते हुए देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि आज भी गांधी के विचार हमारे देश और समाज के लिए उतने ही जरूरी हैं जितने आजादी के समय थे। धार्मिक उन्माद जैसे कुछ मामलों में तो हालात दिन ब दिन बदतर हुए हैं।इसलिए गांधी विचार की प्रासंगिकता भी बढ़ गई है।

2004 में मुझे बाबा आम्टे से उनके आश्रम आनन्द वन में एक आत्मीय वार्ता का अवसर प्राप्त हुआ था। उन दिनों उनकी तबियत काफी नासाज थी लेकिन यह मेरा सौभाग्य था कि उस दिन वे कुछ बेहतर महसूस कर रहे थे जो मेरे साथ करीब आधा घण्टा गुफ्तगू कर सके। उन दिनों मुझे भी गांधी विचार का वैसा अहसास नहीं था जैसा बाद के वर्षों में हुआ। मैंने बातों बातों में उनसे पूछा था –  आने वाले समय में गांधी विचार की क्या प्रासंगिकता रहेगी। जैसे ही बाबा से यह प्रश्न किया उनकी आंखों में चमक बढ़ गई और बिना पलक झपके उन्होंने तुरंत कहा – जिस तरह से विश्व तेजी से हिंसा की तरफ बढ़ता जा रहा है वैसे ही आने वाले समय में पूरे विश्व को गांधी विचार की आवश्यकता और शिद्दत से महसूस होगी। बाबा आम्टे ने जिस आत्म विश्वास के साथ यह कहा था उस पर मैंने उस दिन भी संदेह नहीं किया था क्योंकि बाबा जैसे संत के अनुभव से उपजे ज्ञान पर अविश्वास का कोई कारण नही हो सकता। आज तो मैं भी उसी आत्मविश्वास के साथ यह कह सकता हूं कि आगामी वर्षों में गांधी विचार की प्रासंगिकता और ज्यादा बढ़ेगी क्योंकि विश्व के आधुनिक महान चिंतकों में अकेले गांधी ही ऐसे चिंतक दिखते हैं जिन्होंने हमारे समय की तमाम समस्याओं और चिंताओं पर समग्रता से चिंतन मनन किया है और उनका अहिंसक समाधान करने की हर सम्भव कोशिश की है।

गांधी विचार की वर्तमान प्रासंगिकता पर एक और प्रत्यक्ष प्रमाण याद आ रहा है। बॉम्बे सर्वोदय मंडल के एक छोटे से कमरे से वरिष्ठ गांधीवादी तुलसीदास सौमैया जी अपने युवा सहयोगी राजेश के साथ मिलकर वर्धा आश्रम और जलगांव के जैन गांधी संस्थान की सहायता से गांधी विचार के प्रचार प्रसार के लिए mkgandhi.org नाम से एक वेबसाइट का संचालन करते हैं। कहने के लिए यह एक सादगीपूर्ण साइट है जिस पर कोई खासताम झाम नही है लेकिन कुछ ही साल में तेजी से यह वेबसाइट संभवतः गांधी विचार की सबसे बड़ी वेबसाइट बन गई। इस साइट को अब तक विश्व के दो सौ से ज्यादा देशों के दो करोड़ से अधिक लोगों ने गांधी विचार को जानने समझने के लिए न केवल देखा है बल्कि गांधी के प्रति अपने भावों को भी अभिव्यक्ति दी है। बिना किसी विज्ञापन या प्रचार के इस वेबसाइट का तेजी से विश्व में लोकप्रिय होना यह साबित करता है कि विश्व भर में प्रबुद्ध वर्ग गांधी विचार की तरफ बहुत ध्यान और उम्मीद से देख रहा है।

कुछ साल पहले मुझे वर्धा आश्रम में तीन दिन बिताने का मौका मिला था। आश्रम में रखी विज़िटर्स पुस्तिका पर बहुत से लोग अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। ये लोग दूर दराज के भी थे और काफी आसपास के परिवेश से भी आए थे। मैंने यहां आने वाले लोगों की टिप्पणी देखी तो यह सहज ही आभास हुआ कि गांधी और उनके विचारों के प्रति आज भी लोगों मे कितनी श्रद्धा और विश्वास है।

वैसे भी आज हमारे देश में या विश्व में जितनी भी बड़ी समस्या दिखाई देती हैं उनका सम्यक समाधान गांधी विचार में मिलता है। उदाहरण के तौर पर वर्तमान समय की एक सबसे बड़ी चुनौती क्लाइमेट चेंज की बताई जा रही है। इसी से जुड़ी हुई बड़ी समस्या दिनोदिन बिगड़ते पर्यावरण और हर तरफ गहराते जल संकट की है। यदि हम पिछली सदी में गांधी विचार का ठीक से अनुसरण करते तब यह समस्याएं इतना विकराल रूप धारण नही करती। गांधी सादगीपूर्ण जीवन यापन पर बहुत जोर देते थे और खुद भी सादगीपूर्ण सात्विक जीवन जीते थे। उनकी मान्यता थी कि पृथ्वी पर हर जीव की आवश्यकता के हिसाब से संसाधन मौजूद हैं लेकिन हमारी धरती एक भी व्यक्ति के अनन्त लालच का पोषण नही कर सकती। एक तरह से गांधी ने लगभग सौ साल पहले हमें बहुत स्पष्ट शब्दों में चेताया था कि प्रकृति का जरूरत से अधिक दोहन प्रकृति सहन नहीं कर सकती।

हमने गांधी की बात ध्यान से नहीं सुनी, उस पर ठीक से अमल नहीं किया। इसका दुष्फल हमारे सामने है। हमारा देश ही नहीं अपितु पूरा विश्व अभूतपूर्व पर्यावरण संकट से जूझ रहा है। इसका समाधान गांधी मार्ग पर चलने से आसानी से हो सकता है। यह काम कड़े कानून बनाने से सम्भव नहीं है। इसके लिए भी गांधी के अहिंसक जन भागीदारी वाले आंदोलन की जरूरत है जिसमें बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित करने होंगे। रोपे गए पौधों का उचित रखरखाव करना होगा और लकड़ी की खपत कम कर जंगल बचाने होंगे। इसी राह से पर्यावरण बचेगा। इसी तरीके से जल संकट टलेगा।

गांधी के बाद भी बहुत से लोगों ने गांधी के विचारों का अनुसरण कर महान काम किए हैं। नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग और आँग सांग सूकी आदि ऐसी प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय हस्तियां हैं जिन्होंने अपने रचनात्मक आंदोलनों का श्रेय गांधी को दिया है। आजादी के बाद हमारे देश में भी बहुत सी विभूतियों ने गांधी विचार अपनाकर कई रचनात्मक कार्यों को अंजाम दिया है। विनोबा भावे का भूदान आंदोलन हो या चंबल के डकैतों का आत्म समर्पण, बाबा आम्टे का कुष्ठ रोगियों को आत्मनिर्भर बनाने के काम आदि में गांधी विचार ही प्रेरक शक्ति था। आज भी देश के विभिन्न हिस्सों में कई संस्था और व्यक्ति अपने स्तर पर अपनी क्षमता के अनुसार गांधी विचार के अनुसार सफलता पूर्वक कार्य कर रहे हैं।

भारत की विशेष सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के परिपेक्ष्य में देखें तो आज यह बेहतर समझ में आ रहा है कि क्यों गांधी भारत के लिए यूरोप के शहरी औधोगिकरण के मॉडल को सिरे से अस्वीकार करते थे। वे भारत की नस नस से वाकिफ थे और अपने समकालीनों में संभवतः भारत की जमीनी हकीकत को सबसे बेहतर समझते थे। उन्होंने देश के लिए ग्राम विकास के उस मॉडल की वकालत की थी जिससे देश की अधिसंख्यक ग्रामीण आबादी गांव में रहते हुए अपना आर्थिक विकास कर आत्म निर्भर हो सके। वे बारम्बार यह दोहराते थे कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है और गांवों का समग्र विकास किए बगैर भारत का समग्र विकास नहीं हो सकता।

ग्राम विकास पर जोर देने के पीछे गांधी शायद उस स्थिति को भांप रहे थे जिससे आज हमें जूझना पड़ रहा है। गांवों का समुचित विकास नही होने से एक तरफ गांवों से युवाओं का निरंतर पलायन हुआ है जिससे गांव श्रीहीन हो रहे हैं और दूसरी तरफ शहरों में आबादी का दबाव इतना बढ़ गया है कि वहां की व्यवस्थाएं चरमरा रही हैं। महानगरों में जिस तेजी से झुग्गियों की बाढ़ आ रही है वह निकट भविष्य मे थमती दिखाई नहीं देती। गांवों की श्रीहीनता और महानगरों की दुर्दशा का हल भी गांधी विचार में मिलता है। गांधी अपने रचनात्मक कार्यों में गांव के लिए कुटीर उद्योगों को सबसे ज्यादा महत्व देते थे। इससे गांव के युवाओं को गांव में ही रोजगार मिलता था और उन्हें रोजी रोटी के लिए गांव का हरा भरा वातावरण छोड़कर शहर की झुग्गी बस्तियों के दमघोंटू वातावरण में रहने की मजबूरी नहीं होती।

गांधी विचार की एक खासियत यह भी है कि वह ऊपर से देखने में बहुत सरल लगते हैं और साथ ही प्रथम दृष्टया अव्यवहारिक लगते हैं लेकिन जब हम उनकी जड़ तक पहुंचते हैं और मन से अपनाते हैं तब उसका आकर्षण इतना सघन होता है कि हम उसके बाहर नहीं आ सकते। इसे हम देश विदेश घूमकर मल्टी नेशनल कम्पनियों की करोडों की कमाई वाली नौकरियां छोड़कर दूरदराज के इलाके में पांच दस एकड़ जमीन पर जैविक खेती कर जीवन यापन करने का निर्णय लेने वाले प्रबुद्ध वर्ग के लोगों से बात कर समझ सकते हैं। इन लोगों ने गांव में खेती करने का रास्ता बहुत सोच समझकर सार्थक जीवन जीने के लिए चुना है क्योंकि वहां इन्हें प्रदूषण मुक्त साफ हवा मिल रही है और पेस्टीसाइड रहित जहर मुक्त भोजन मिल रहा है जो स्वस्थ जीवन के लिए सबसे जरूरी है। ऐसा शांतिपूर्ण सुकून का जीवन महानगरों में संभव नही है। दरअसल जाने अंजाने ऐसे लोग अपने लिए गांधी मार्ग ही चुन रहे हैं जो सबसे सुरक्षित और सही मार्ग है। मैंने भी आने वाले समय के लिए यही रास्ता चुना है क्योंकि मुझे भी यही सबसे बेहतर रास्ता नजर आ रहा है। और गांधी के ही शब्दों में “हमे खुद से ही बदलाव की शुरुआत करनी है।”

 

© श्री राकेश कुमार पालीवाल

हैदराबाद

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments