हिन्दी साहित्य- कथा-कहानी – लघुकथा – ☆ एक मुकदमा ☆ – श्री संदीप तोमर

श्री संदीप तोमर 

☆ एक मुकदमा ☆

(e-abhivyakti में श्री संदीप तोमर जी का स्वागत है। आपने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में सृजन कार्य किया है और कई सम्मानों एवं अलंकरणों से सुशोभित हैं। आपके उपन्यास “थ्री गर्ल्सफ्रेंड्स” ने आपको चर्चित उपन्यासकार के रूप में स्थापित कर दिया। हम भविष्य में ई-अभिव्यक्ति के पाठकों के लिए और भी साहित्य की अपेक्षा करते हैं।)

 

ऐतिहासिक मुकदमा था। कोर्ट परिसर लोगो से अटा पड़ा था। न्यायाधीश ने कहा-“सानन्द जी, आपने जो केस फाइल किया, उसमें आपने अपनी माँ की मृत्यु अस्थमा से बताई है, लेकिन साथ ही आपका कहना है कि आपकी माँ की की हत्या हुई है, आप क्या कहना चाहते हैं स्पष्ट कहिये।”

“माता जी दीवाली पर सदा परेशान रहती थी। मेरा घर कालोनी के ऊपर के माले पर है, नीचे बमों की लड़ी, और बम पटाखों का धुआं सीधा ऊपर आता था। जज साहब यकीन करिये , माँ का  दम घुटने लगता था। वो  80 वर्ष की थी, मेरी माता जी का क्या हाल होता होगा, आप अंदाजा लगा सकते है। वो तड़पती थी।“

लेकिन आप जाकर बोल सकते थे, पुलिस के पास जा सकते थे।“-न्यायधीश ने कहा।

“दीवाली पर किसे नीचे जाकर बोलता जज साहब कि बंद करो ये सब, मेरी माँ को तकलीफ है और नीचे ही क्यो? धुंआ तो पूरे इलाके में है, पूरे शहर में ये ही आलम है, माँ चद्दर लेकर मुँह ढक लेती थी, लेकिन राहत कहाँ मिलती उसे।“

“एक आपकी माँ ही बुजुर्ग नहीं शहर में बहुत बुजुर्ग हैं।“

“शायद दुनिया के सारे बुजुगों को ऐसा महसूस नही होता होगा, पर मेरी माँ को होता था।  पूरी रात बैचैन रहती थी माँ।“

“ठीक है, लेकिन बिमारी के चलते उनकी मृत्यु हुई आप उसे हत्या कैसे कह सकते हैं”

“जज साहब वो रात बड़ी भयानक थी, लोग दीपावली की खुशियाँ मना रहे थे, जैसे-जैसे पटाखों का धुआं और शोर बढ़ता जाता था, उसकी साँस फूलती जाती थी, वो तकलीफ अपने आँखों से देखी थी,  मैं बार बार बालकनी तक आता था, माँ को नुबेलाइज करता और सोचता था  अब बंद हो पटाखें, लेकिन रात जैसे जैसे सबाब पर आती गयी आतिशबाजी बढती गयी, माँ ने आँखें बंद कर ली, वो चली गयी जज साहब, वो चली गयी।“

लेकिन ये एक धर्म पर आरोप का मामला हुआ।“

“नहीं जज साहब, वो सब्बेबारात, गुरुपरब, गुड फ्राइडे सब दिन ऐसे ही जीती-मरती रहती थी।“

“हाँ सानन्द आपने अब मेरी मुस्किल आसान कर दी,  कोर्ट के फैसले का इन्तजार कीजिये।“

“जी जज साहब, आप इन्साफ करेगे इसका मुझे विश्वास है लेकिन मेरे भारत में मायलार्ड को गाली देने वालो की कमी नही है। कोर्ट में बैठे मेरे कई साथी मुझसे असहमत होंगे, मुझे उनसे कोई शिकायत नही, मैं स्वार्थी हूँ, मुझे आज भी अपनी माँ की वो तस्वीर, उसका चेहरा याद आता है तो तकलीफ होती है, किसी भी धर्म का मेरी बात से लेना-देना नही है। मैंने तो बम-पटाखों से फैलते धुंए की वजह से अपनी माँ की तकलीफ से, कोर्ट को अवगत कराया है। निस्वार्थी और बम पटाखों के प्रबल समर्थकों और धर्म के रखवालों से माफी चाहूँगा, आज मेरी माँ नही है, मुझे उसकी तकलीफें है, कल आपको भी होगी।“

सानन्द बोले जा रहे थे।

जज साहब ने टाइपिस्ट को फैसला टाइप करने का इशारा किया।

© श्री संदीप तोमर