हिन्दी साहित्य- कथा-कहानी – लघुकथा – ☆ उदासी ☆ – श्री सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
श्री सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
(श्री सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा जी का e-abhivyakti में स्वागत है। प्रस्तुत है श्री अरोड़ा जी की मानवीय संवेदनाओं पर आधारित लघुकथा ‘उदासी’। हम भविष्य में श्री अरोड़ा जी से उनके चुनिन्दा साहित्य की अपेक्षा कराते हैं।)
☆ उदासी ☆
‘कभी कभी ऐसा क्यूँ हो जाता है कि बिना वजह हमे उदासी घेर लेती है? ‘
‘ तुम उदास हो क्या?’
‘ उदास तो नहीं पर खुशी भी महसूस नहीं कर पा रहा ।’
‘ मेरा साथ तो तुम्हें पसन्द है और मैं तुम्हारे साथ हूँ । फिर भी तुम उदास हो । कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारा मन मुझसे भर गया है ? ‘
‘ ऐसी बातें मत करो । इससे मेरी उदासी बढ़ जायेगी । ‘
‘ फिर तुम भी उदास होने की बात मत करो ।’
‘ यार! एक बात बताओ, जिंदगी क्या सिर्फ हमारी – तुम्हारी दिनचर्या का नाम है ? ‘
‘ ऐसा क्यों सोच रहे हो? हम हर दिन उन सारे लोगों से मिलतें हैं, जिनसे हमें कोई न कोई काम होता है । बेमतलब तो किसी से बात नहीं की जा सकती न ।’
‘ बस इसे ही जिंदगी कहते हैं क्या?’
‘ और क्या होती है जिंदगी? आज ऐसा क्या हुआ जो नहीं होना चाहिए था और ऐसा क्या नहीं हुआ जो होना चाहिए था कुछ समझ नहीं आया । आखिर कहना क्या चाहते हो ? ‘
‘ यही कि वो आदमी कितनी शिद्दत से जिन लोगों की जिंदगी के गड्ढे भरने की कोशिश कर रहा था ‘ वो उसी गड्ढे में गिरकर मर गया जिसे उन लोगों ने उसे भरने नहीं दिया । मतलब उसे जबर्दस्ती मार दिया गया ।’
‘ तो क्या इसीलिए उदास हो? ‘
‘ क्या मेरी उदासी के लिए ये वजह काफी नहीं है कि उस आदमी ने जिन लोगों के लिए गड्ढों को भरने की कोशिश की वही उसकी मौत का कारण बन गए! ‘
‘ समझ में नहीं आ रहा कि तुम्हारे साथ रहकर, तुम्हें पहले से ज्यादा प्यार करूँ या तुम्हें तुम्हारी कँकरीली उदासियों के बीच छोड़कर किसी सरपटी नरम राह की राहगीर बन जाऊं ? ‘
‘ अच्छा तो यही होगा कि तुम कोई नरम राह चुन लो ।’
‘ तुम्हें पता भी है कि हर नरमी को कठोर धरातल की जरूरत होती है। नहीं तो वह नरमी कुछ देर बाद धंस कर गड्ढा बन जाती है । और हाँ, तुम्हारी उदासियों से वो आदमी जिन्दा नहीं हो जायेगा ।’
‘ तो क्या करूं? ‘
‘ उठो और उसकी तमाम कोशिशों के बाद भी जो गड्ढे भरे नहीं जा सके, उसकी वजह खोजों और उन्हें भरने की कोशिश भी करो । फिर देखना वो आदमी फिर से जिन्दा हो उठेगा ।’
वो स्नेह सिक्त मुद्रा में उसे देखने लगा ।
© सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा