डॉ कुंवर प्रेमिल
☆ बाल कथा – किस्सा सियार और जुलाहे का ☆
एक जुलाहा था।
हाँ…..
वह काम की तलाश में एक जंगल से होकर गुजर रहा था। उसने अपने कंधे पर रूई धुनकने वाला पींजन और हाथ में उसका मुठिया पकड़ रखा था।
हाँ….
बीच रास्ते में उसे एक सियार मिल गया। अचानक दोनों का आमना-सामना हुआ तो सियार डर गया। कहीं जुलाहा अपने हाथ में पकड़े मुठिये से मारने लगा तो!
हूँ….
उसका दिमाग चला, उसने जुलाहे की शान में एक कविता पढ़ी –
हाँ …. कौन सी कविता पढ़ी?
कांधे धनुष हाथ लिए बाना (बाण)
कहाँ चले दिल्ली सुल्ताना।
जुलाहे ने अपनी तुलना सुल्तान से करते देख सियार को बड़ी प्यारी-प्यारी नज़रों से देखा, वाह! सियार तो बड़ा गुणी दिखाई देता है।
हूँ….
जुलाहे ने भी सियार की शान में कविता पढ़ी –
वन के राव (राजा) बेर का खाना।
© डॉ कुँवर प्रेमिल
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