डॉ . प्रदीप शशांक
(डॉ प्रदीप शशांक जी द्वारा प्रस्तुत यह सामयिक लघुकथा “वाह! क्या दृश्य है?“अत्यंत हृदयस्पर्शी है । वर्तमान में देश के विभिन्न राज्यों में भारी बारिश की वजह से बाढ़ की स्थिति बनी हुई है । यह लघुकथा उन्होने लगभग 12 वर्ष पूर्व बाढ़ की विभीषिका पर लिखी थी।)
? वाह! क्या दृश्य है ? ?
रमुआ पीपल के पेड़ की सबसे ऊंची डाल पर बैठा अपने चारों ओर दूर-दूर तक फैली अथाह जल राशि को देख रहा था ।
गांव के नजदीक बने बांध के भारी वर्षा से टूट जाने के कारण अचानक आई बाढ़ से पूरे गाँव में पानी भर जाने से कच्चे मकान ढह गये थे और गाँव के लोगों के साथ ही ढोर जानवर भी बहने लगे थे । बाढ़ के पानी में बहते हुए उसके हाथों में पीपल की डाल आ गई थी, जिसे उसने मजबूती से पकड़ उस पर चढ़कर अपने आप को किसी तरह बहने से बचा लिया था ।
पेड़ पर बैठे हुए आधा दिन एवं पूरी रात बीत गई थी । भूख प्यास के मारे उसका बुरा हाल था । बाद का पानी उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था, कहीं से कोई सहायता मिलती नजर नहीं आ रही थी। उस पर रह-रह कर बेहोशी छा रही थी । तभी उसे दूर आसमान पर हेलिकॉप्टर के आने की आवाज सुनाई दी । हेलिकॉप्टर उसी ओर आ रहा था । एक पल के लिये उसके मुर्दा हो रहे शरीर में जान आ गयी । हेलिकॉप्टर के नजदीक आने पर उसने पूरी ताकत से मदद के लिये आवाज लगाई, किंतु हेलिकॉप्टर की गड़गड़ाहट में उसकी आवाज दबकर रह गई । नजदीक से निकलते हेलिकॉप्टर में उसने एक सफेद खद्दरधारी को प्रसन्नचित्त मुद्रा में दुरबीन आंखों से लगाये देखा । उस खद्दरधारी के चेहरे के भाव से उसे महसूस हुआ जैसे वह कह रहे हों – वाह! क्या दृश्य है ।
हेलीकॉप्टर की गड़गड़ाहट दूर होती जा रही थी और रमुआ अपने आपको पूरे होश में रखने की कोशिश कर रहा था, लेकिन वह सफल न हो सका । अंततः वह चेतनाशून्य होकर बाढ़ के पानी में बह गया ।