श्री नरेंद्र राणावत
☆ लघुकथा – उसने कहा था ☆
ऐवन पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य की परेशानियों के कारण तनाव में थी। उसे अपने जीवन की अगली राह दिखाई ही नहीं दे रही थी। मन में व्याप्त अवसाद उसे बार-बार आत्महत्या के लिए प्रेरित कर रहा था।
इसी मानसिकता में ऐवन आज आँगन में ओटले पर बैठी पैर के अंगूठे से जमीन को कुरेद जरूर रही थी, उसकी निगाह एकटक शून्य में गुम थी । एक बार तो उसके आँखों के सामने अंधेरा छा गया, फिर जो प्रकाशपुंज उठा, उसकी आँखें तो क्या, आत्मा तक चौंधिया गई।
‘ऐवन, मुझे तुम्हारे निर्णय पर कोई आपत्ति नहीं, मैं तुम्हारी किसी मजबूरी का फायदा उठाना नहीं चाहता। शायद तुम मुझे पूरी तरह समझ न पाई हो। लेकिन फिर भी इतना कहूँगा कि मैं जीवन भर सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा इंतजार करूंगा। जब चाहो याद कर सकती हो।’
हाँ, कॉलेज में अंतिम दिन यही तो कहा था नरेंद्र ने।
नरेंद्र, जो पिछले साल भी मॉल में एक बार फिर मिला था। उसके बालों में सफेदी ने अपनी दस्तक दे दी थी, लेकिन चेहरे का ओज और वार्तालाप में अद्भुत आत्मविश्वास झलक रहा था। ऐवन सोच रही थी, उम्र की मार तो नरेंद्र पर भी पड़ी ही होगी। शायद आत्मविश्वास ही वह दवा है जो आधी बीमारी दूर कर देती है।
‘मुझे भी अब नरेंद्र के लिए जीना है, पता नहीं वह कब किस मोड़ पर मिल जाए।’
ऐवन ने सोचा और जैसे ही उठ खड़ी हुई, उसके मन मे छाये अवसाद नाम की चिड़िया अपना घोंसला छोड़ सदा के लिए उड़ चुकी थी।
© नरेंद्र राणावत ✍
गांव-मूली, तहसील-चितलवाना, जिला-जालौर, राजस्थान
+919784881588
बढ़िया, प्रेरणा दायक
बहुत बहुत शुक्रिया दी