डॉ कुंवर प्रेमिल
(डॉ कुंवर प्रेमिल जी जी को विगत 50 वर्षों से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में लगातार लेखन का अनुभव हैं। अब तक दस पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन। वरिष्ठतम नागरिकों ने उम्र के इस पड़ाव पर आने तक कई महामारियों से स्वयं की पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है। स्वयं से प्रश्नोत्तर स्वरुप आपकी समसामयिक विषय पर आधारित एक मौलिक लघुकथा “प्रश्नोत्तर”। )
☆ प्रश्नोत्तर ☆
प्रश्न- आज का दुखद सपना और अकाट्य सत्य क्या है?
उत्तर- आज का दुखद सपना और अकाट्य सत्य कौरोना वायरस है! इसे कोई सपने में भी नहीं देखना चाहते हैं ओर सत्या सत्य यह है कि इसे रोका नहीं गया तो एक भीषण तबाही पीढ़ियों को नेस्त नाबूत करने एक दम सामने खडी़ है, इससे बचने की कोई गुंजाईश सतर्कता के अतिरिक्त दूर दूर तक नजर नहीं आ रही हैं।
लाल बुखार, पीला बुखार, प्लेग, हैजा से बचते बचाते यहां तक तो आ गए अब इस महामारी से कैसे बचेंगे रे भैया? जीवन पर मृत्यु भारी पड़ रही है, आज की यह विकट लाचारी है। खुदा ही मालिक है, उसके रहमोकरम पर दुनिया सारी है।
© डॉ कुँवर प्रेमिल
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