हिन्दी साहित्य- कथा-कहानी – लघुकथा – * तलाक की मिठाई * – डॉ . प्रदीप शशांक

डॉ . प्रदीप शशांक 

तलाक की मिठाई 
“अंकल जी नमस्ते, आंटी कहां हैं ?”
हमने नजर उठाकर देखा तो कालोनी के दुबे जी की लड़की सोनल खड़ी थी । सोनल की शादी अभी दो वर्ष पूर्व ही हुई थी, किंतु ससुराल वालों से किसी बात पर हुई खटपट एवं पति के दुर्व्यवहार के कारण वह एक माह के भीतर ही मायके लौट आई थी ।
“आंटी जी तो नहीं हैं, वे बाजार गई हैं ।”
” ठीक है अंकल ये मिठाई रख लीजिये “
” मिठाई …. किस ख़ुशी में … ” मैंने पूछा ।
सोनल ने कुछ शर्माते और मुस्कराते हुए कहा – “अंकल, वो मुझे तलाक मिल गया है ना, उसी की मिठाई है ।”
सोनल चली गई, लेकिन मैं मिठाई का पैकिट हाथ में लिये सोच रहा था कि क्या जमाना इतनी तेजी से बदल रहा है ? विवाह की मिठाई तो खाई थी, अब तलाक की मिठाई –
क्या आधुनिकता के मायने भी बदल रहे हैं ? ऐसे अनेकों प्रश्न मेरे मस्तिष्क में चक्कर काटने लगे ।
© डॉ . प्रदीप शशांक 
37/9 श्रीकृष्णम इको सिटी, श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास, कटंगी रोड, माढ़ोताल, जबलपुर ,म .प्र . 482002