हिन्दी साहित्य- कथा-कहानी – लघुकथा – * अपराध बोध * – डॉ . प्रदीप शशांक

डॉ . प्रदीप शशांक 

अपराध बोध 
रात के सन्नाटे में गुप्ता सर कोचिंग क्लास में  पढ़ाकर अपनी मोटरसाइकिल से घर जा रहे थे । अचानक एक मोड़ पर चार हथियारबंद युवकों ने सामने आकर उन्हें रोक लिया । एक युवक ने उन्हें छुरा पेट में अड़ाते हुए कहा ” जो भी माल हो फौरन निकाल कर दे दो , वरना ……… “
गुप्ता सर ने घबराई हुई आवाज में कुछ कहना चाहा, तभी उन्हें वह लड़का जाना पहचाना लगा । उन्होंने उसे गौर से देखा और आंखों में चमक लाते हुए बोले – ” अरे……… विनोद बेटे तुम……… मुझे पहचाना नहीं, मैं तुम्हारा गुरूजी, तुम्हें मैंने 12 वीं कक्षा में पढ़ाया था………”  विनोद नें बात बीच में ही काटकर गुर्राते हुए कहा ……… “चुप……… अपनी गन्दी जुबान से गुरुजी जैसे पवित्र शब्द मत निकालिये। आप जैसे शिक्षा के व्यापारियों ने वास्तविक गुरूजी के ज्ञान को पीछे धकेल कर शिक्षा का मजाक बनाकर सिर्फ रुपया कमाना अपना उद्देश्य बना लिया है और हम जैसे बेरोजगारों को सही रोजगारी शिक्षा के अभाव में ही अपराध के इस अंधेरे जंगल में भटककर अपना और अपने परिवार का पेट पालना पड़ रहा है । यदि आप जैसे गुरुओं ने शिक्षा को व्यापार न बनाया होता और हमें  सही शिक्षा  प्रदान की होती तो आज देश में हम जैसे अपराधी बेरोजगारों की फौज पैदा न होती ……… । इसके पहले कि हम लोगों का वहशीपन जागे, आप  तत्काल यहां से चले जाइये।”
गुप्ता सर शर्म से सिर झुकाये अपने शिक्षक धर्म के बोझ को ढोते हुए अपराधबोध से ग्रसित घर की ओर बढ़ गये ।
© डॉ . प्रदीप शशांक 
37/9 श्रीकृष्णम इको सिटी, श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास, कटंगी रोड, माढ़ोताल, जबलपुर ,म .प्र . 482002