श्री विजय कुमार
(आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पत्रिका शुभ तारिका के सह-संपादक श्री विजय कुमार जी की लघुकथा “आशीर्वाद ”।)
☆ लघुकथा – आशीर्वाद ☆
“अरे वाह मीनू, तुम्हारे तो ऑफिस के सारे के सारे लोग पहुंचे हुए हैं, रौनक लगवा दी तुमने तो,” अनिल ने कहा।
“बुलाने का तरीका होता है, ऐसे थोड़े ही कोई आता है,” मीनू ने मुस्कुराते हुए कहा।
“वह कैसे?” अनिल ने उत्सुकता से पूछा।
मीनू ने बताया, “मैं अपने ऑफिस में कार्ड के साथ सभी को मिठाई का डिब्बा दे रही थी। मैंने अपने सभी साथियों से कहा था, ‘मेरी बेटी की शादी में उसे आशीर्वाद देने अवश्य ही आइयेगा।’
इस पर सुशील बोला, ‘शायद मैं न आ पाऊँ, पर मैं प्रताप के हाथों शगुन का लिफाफा अवश्य ही भेज दूंगा।‘
इस पर मैंने कहा, ‘यदि आप नहीं आ सकते तो न आएं, किन्तु शगुन का लिफाफा भी मत भेजिएगा। मैं यह कार्ड और मिठाई शगुन के लिफाफे के लिए नहीं दे रही हूँ। ये मेरी अपनी ख़ुशी है जो मैं आप सब से साझा कर रही हूँ, और इसलिए दे रही हूँ कि यदि आप आएंगे तो मेरी बेटी की शादी में रौनक बढ़ेगी और उसे आप सबका आशीर्वाद भी मिलेगा। इसलिए मेरा निवेदन है कि आप सभी लोग शादी में अवश्य आएं। और हां, शगुन का लिफाफा मैं सिर्फ उसी से लूंगी जो मेरी बेटी को शादी में उसे आशीर्वाद देने पहुंचेगा, अन्यथा नहीं।‘
“तभी आज शादी में ऑफिस के सभी लोग बेटी को आशीर्वाद देने आए हुए हैं।” अनिल मुस्कुरा दिया।
© श्री विजय कुमार
सह-संपादक ‘शुभ तारिका’ (मासिक पत्रिका)
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