श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “
(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी एवं दूरदर्शन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती हेमलता मिश्रा जी की एक सार्थक एवं हृदयस्पर्शी लघुकथा मेहनत की पूंजी। इस अतिसुन्दर रचना के लिए आदरणीया श्रीमती हेमलता जी की लेखनी को नमन। )
☆ मेहनत की पूंजी ☆
पाँच बरस पहले जब सहर गया था जुगनू कंपनी में नौकरी करने— तब झोंपड़ी की तरह दिखने वाला मगर मजबूत घर – – घर के सामने लगभग एक एकर का बाड़ा – – बाडे़ में चारों ओर घेरते सीताफल निबू संतरा के फलदार वृक्ष आँगन के बीचों-बीच तुलसी मैया का चौरा और आँगन द्वारे से कुछ ही दूर गाँव का चौबारा पीपल की घनी छाया वाला – – ये सब छोड़ कर गया था। – – – – और सबसे ज्यादा अम्मा बाबूजी की गूंजती आवाज में सुबह सबेरे से रामायण की दोहा, चौपाई, सोरठा, छंद और शाम को ढोलक की धमधम और झांझ की छनक छन के साथ आल्हा की रागिनी—बड़ी कठिनाई से भुला पाया था यह स्वर्गिक आनंद।
दस बाय दस की कुठरिया में बीते आजाद जिनगी की बँधी नौकरी के पांच साल और हासिल रहा आज अम्मा बाबूजी की राख और ये उजडा़ चमन।
कुआं भीतर धस चुका था। बबूल की झाड़ियां बेसरम के झाड़ और झरबेरी पूरे परिसर को लील चुकी थी। दो तीन दिनों की हाड़तोड़ मेहनत के बाद कुंआं कुछ उपर आया और पानी हाथ को लगा।
बस दोनों आदमी औरत को तो प्राण मिल गये मनो। खोदते चले खोदते चले और एक समय घुटना घुटना पानी आ गया।
दो दिन से डबल रोटी और चाह पर जी रहे परिवार की चाह जी उठी।
अचानक घर की कुंडी बजी। द्वार पर बड़ी बखरी के कारिंदे खड़े थे। उनके हाथ में एक कागज था जिस पर कुछ लिखा था और नीचे बाबूजी का अंगूठा और नाम लिखा था। पढा कि यह घर बाड़ा कुआं सबकुछ बखरी के मालिकों के पास गिरवी पड़ा है– 20000/- रूपयों में! एक क्षण के लिए अँधेरा छा गया आँख के नीचे लेकिन सहर के वासी हो चुके दोनों मानस – – – छिपा लिए अपने टूटे दिल का हाल और वादा कर लिया उनसे कि छःमाह में पूरा पईसा चुका देंगे
और दूसरे दिन के सूरज ने देखा कि चार मेहनतकश हाथ और कांँधे हल से जुते हैं और चार नन्हीं हथेलियाँ थोड़ी-थोड़ी देर में उन्हे पानी और गुड खिला रही हैं।
कोरोना के कारण बदली उस परिस्थिति में आज बस उफनता वर्तमान और चमकता भविष्य ही उस मेहनती परिवार का सहारा है जो अपने ही घर में मजदूरी करके भी आशाओं के आशीष की राह पर चल पड़े हैं मेहनत की पूंजी के सहारे।
© हेमलता मिश्र “मानवी ”
नागपुर, महाराष्ट्र
अच्छी रचना