डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’
( डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी बेंगलुरु के जैन महाविद्यालय में सह प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, स्वर्ण मुक्तावली- कविता संग्रह, स्पर्श – कहानी संग्रह, कशिश-कहानी संग्रह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कहानी जनरेशन गेप। )
☆ कथा कहानी – जनरेशन गेप ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆
बेंगलूरु से गुलबर्गा की एक स्पेशल ट्रेन दोपहर चार बजे चली। कुछ घंटो बाद रास्ते में आना ने खाने के लिए मुंगफली और चॉकलेट भी ली। फिर अपनी उदासी दूर करने के लिए उसने चाय भी ली। फिर भी बीती हुई बात से बहुत परेशान थी। वह ट्रेन से बाहर हरियाली देख रही थी। नज़ारा बहुत अच्छा लग रहा था। रास्ते में उसने समुंदर को भी देखा। उस वक्त उसे लगा कि समुंदर में पानी के बहाव के साथ उसकी सोचने समझने की शक्ति भी बूढी हो चली है। ट्रेन में हर जगह शोर मच रहा था। कोई चाय बेच रहा था तो कोई फर्श साफ करके रुपया मांग रहा था। कोई खिलौना बेच रहा था। दूसरी ओर बच्चे रो रहे थे। आना हर हफ्ते ट्रेन में सफर करती है। उसको काम के लिए दूसरी जगह जाना पड़ता है। हर बार कोई न कोई वक्त काटने के लिए उसे मिल जाता है। आज उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। उसे लग रहा था कि वह सबसे चिल्लाकर चुप रहने के लिए कह दे, वो भी संभव नहीं था। फिर भी आज वो शोर भी पसंद नहीं आ रहा था। वह कुछ भी नहीं कर पा रही थी। वह किसी से भी बात नहीं करना चाहती है। मन में सागर की लहरें उमड रही थी। उसका मन बहुत परेशान था। अचानक वह अपने मन को थाह देने के लिए आसमान की ओर देखने लगी। उसे सारा अस्तित्व जैसे शून्य सा लग रहा था। उसकी सोच रुक सी गई थी।
करें भी तो क्या करें ? कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। अनेकों सवालों ने उसके मन में घेरा जमा लिया था, जिसका उत्तर खोज रही थी। आना को कोई उस पर हमदर्दी जताए वह पसंद नहीं था, ना तो खुद भी किसी पर हमदर्दी जताती थी।
आना इतनी गहरी सोच में थी। अचानक सामने की सीट पर बैठी औरत बात करती है, आप कहाँ जा रही हो? आना ने उसे सुनकर जवाब दिया। धीरे-धीरे दोनों के बीच बातचीत का दौर बढा। आना को थोडा अच्छा महसूस होने लगा। उसे लगा, एक राजदार मिल गया। इनसे कोई भी बात कह देंगी चलेगा। यह तो सफर है, अनेक लोग मिलते-बिछडते है। आना बहुत बातुनी थी। सिर्फ आज वह किसी कारण से खामोश थी। उस औरत ने जैसे ही आना की चुप्पी तोड़ी फिर आना बात करने लग गई। आना ने कुछ देर सोचकर कहा, जी आपने अपना क्या नाम बताया?
जी, गीता। और आप?
मेरा नाम आना है। मेरा और ट्रेन का सफर दोनों रहता ही है। जी मैं गुलबर्गा काम के लिए जाती हूँ। मैं कई लोगों से मिलती हूँ। अच्छा सुनिए गीता जी, सफर में हम अनेक लोगों से मिलते है। इतना ही नहीं बात करते हुए अपनी जिंदगी के रहस्यों को भी बताते है। थोडा मन भी हल्का हो जाता है। हमें किसी बात की चिंता या शक नहीं होता। मतलब कि आप किसी को भी हमारे बीच की बातों को बताएंगी नहीं। अगर बता भी देती है तो मुझे कोई फर्क भी नहीं पडता। आगे हमारा मिलना लिखा है या नहीं वो भी पता नहीं चलता। कितना अच्छा है कि हम मन की बाते खुलकर कर सकते है। यह कहते हुए आना ने सूक्ष्मता से मन का समाधान भी कर लिया और गीता जी को सचेत भी कर दिया।
जी सही कहा आपने। मैं कभी कभी इस तरह से ट्रेन में आती जाती रहती हूं। अक्सर मैं सफर तय नहीं करती हूं। मैं एक बात कहूं, आप बहुत सुंदर दिख रही हो।
मैं ….जी, मेरी तो उम्र हो चुकी है। मेरा एक बडा बेटा भी है। अब इस उम्र में क्या सुंदर?…..कहते हुए आना मुंगफली खाती और गीता को भी देती है।
गीता बस उसे देखती रह जाती है। इस उम्र में भी इस तरह से सुंदर रहना, अपनी सेहत को इस तरह से संजोकर रखना मुश्किल है। गीता को आना के कटे हुए बाल, गालों पर पड रहे डिम्पल, उसकी हंसी बहुत पसंद आयी। गीता ने तो मन की बात को आना के सामने रखते हुए कहा, लगता नहीं कि आपकी उम्र हो चुकी है। आज भी आप बेहद खूबसूरत दिख रही हो। कहते हुए गीता थोडा पानी पीती है।
आना ने उनको तनखियों से देखते हुए कहा, उम्र का पता नहीं चलता…कभी-कभी यही परेशानी हो जाती है। मैं तो लोगों को खुलकर बताती हूँ कि मेरा बडा बेटा है। उनको तो कोई भी फर्क नहीं पडता है। वे सिर्फ मर्द और औरत को ही जानते है। आज कल प्यार की परिभाषा ही बदल गई है। नवयुवक प्यार नहीं, बस कुछ और की ही अपेक्षा रखता है।
गीता को अजीब लगा और उसने तुरंत कहा, बुरा मत मानिएगा, आप गलत समझ रहे हो। आज भी कई लडके है, जो इस तरह के प्यार में विश्वास नहीं रखते। आप एक या दो की वजह से अगर पूरे संसार के मर्दों पर तोहमत नहीं लगा सकती। हम तो यही सोचते है कि आजकल बच्चे भविष्य के प्रति सतर्क हो चले है। कई बच्चे पढाई के साथ परिवार की जिम्मेदारी भी निभा रहे है। मानते है कि आप जिनसे मिली है, शायद वह लडका ऐसा हो। हम फिर ऐसे लोगों को देखकर ही कहते है कि जनरेशन गेप है। हां मानती हूँ कि उनका पहनावा बदल गया है। उनका आदर करने का तरीका बदला है मतलब यह नहीं कि उनकी सोच इतनी बदल गयी है कि आज के युवकों की दृष्टि सिर्फ वही तक सीमित नहीं है, वे तो बहुत आगे निकल चुके है। मैं आपकी बातों से सहमत नहीं हूँ, आना जी। आप ज़रा खुलकर बताएंगे तो सही रहेगा। लगता है आपको जिंदगी में गहरी चोट लगी है।
आना को भी गीता की बात सही लगी। फिर भी जो बात वह कहना चाहती है, शायद वह नही कह पा रही है। एक झुंझलाहट महसूस कर रही है। फिर थोडी देर मौन के बाद वह स्वयं में हिम्मत लेकर बात करती है। हां जी आपने सही कहा, आज एक बात तो माननी पडेगी कि नवयुवक अपनी बात को दूसरों के समक्ष रखने में थोडी सी भी हिचकिचाहट महसूस नहीं करते। पहले कोई भी बात कहने से पहले हम सोचते थे।
जी, सही है। आज कल में इतना बदलाव तो आया है। कहते है कि कृष्ण भी बदले थे। हम भी इन्सान है। अगर हम में बदलाव नहीं आएगा तो किसमें आएगा? अच्छा बताइए आप कुछ कह रही थी, कहते हुए गीता थोडी ठीक बैठती है।
आना अपनी बात को रखते हुए कहती है, गीता जी, मैं स्वास्थ्य का बहुत खयाल करती हूं। इसलिए जिम भी जाती हू। थोडी कसरत हो जाती है। मुझे दूसरी औरतों की तरह चाय पीते हुए बैठना, दूसरों के घर के बारे में चर्चा करना आदि सब अच्छा नहीं लगता। कसरत के स्थल पर तरह-तरह के लोग आते है। हर उम्र के लोग आते है। वहां पर मेरी दोस्ती एक लडके से हुई। दोनों ने अपना-अपना फॉन नंबर एक्सचैंन्ज किया। दोनों की गहरी दोस्ती हुई। वह लडका उम्र मुझसे करीबन बीस साल छोटा है। उसने एक रात मैसेज किया और कुछ और बात की चाहत रखी। मैं परेशान हो गई।
मैंने उसे समझाते हुए कहा, देखो तुम उम्र और तजुर्बे में मुझसे बहुत छोटे हो। तुम्हें पता नहीं चल रहा है कि तुम क्या मांग रहे हो? अब दोस्ती एक तरफ और ये सब …? कहते हुए थोड़ी देर रुककर अपनी बात को आगे बढाती है। ऐसी बातें शोभा नहीं देतीं है। वह किसी भी हाल में नहीं मान रहा था। मुझे उसका दिल दुखाने का मन नहीं था फिर भी कहा, देखो मैं अपने पति को धोखा नहीं दे सकती हूं। क्षमा करें। बाद में उसने मुझसे बात करना ही छोड दिया। मुझे भी उसका स्पर्श अच्छा लगता था। उसका मेरे साथ बतियाना भी लेकिन..लेकिन मैं कैसे अपनी मर्यादा भूलकर जा सकती थी? नहीं हो सकता था। मेरी निजी जिंदगी में लाख परेशानी हो फिर भी मर्यादा का खयाल तो रखना ही था।
सही कहा आना। इसीलिए तुम परेशान थी, पता ही नहीं चला। ठीक है समय के रहते वह लडका भी संभल जाएगा। इतना परेशान नहीं होना चाहिए। अरे! जनरेशन गेप उम्र का फासला मात्र रह गया है। आजकल तो शादी भी ऐसी ही हो रही है, गलत नहीं है। मुझे तो लगता है कि व्यक्ति की सोच मिलनी चाहिए।
आगे सुनिए तो, मैंने सोचा कि वह लडका सुधर जाएगा। अचानक फिर से एक दिन मुझे मैसेज आता है कि मुझसे आकर मिलों वरना मैं तुम्हारे पति को सारी बात बता दूँगा। मैंने सोचा, यह तो हद हो गई। ऐसे भी लोग दुनिया में रहते है। उसे सिर्फ मेरी ज़रुरत थी, और कुछ नहीं। वह तो ज़िद्द पर अड गया। बाद में मैंने अपने पति को सारी बाते बताई।
अरे! आना जी आप को भी दाद देनी पड़ेगी। आपने यह सारी बात आपके पति को बताई। फिर क्या हुआ? आपके पति ने आपको कुछ नहीं कहा। कहते हुए गीता जी ने उत्सुकता जताई।
मेरे पति बहुत अच्छे है। देवता समान है। उनको सजदा करने को मन करता है। सच में कभी तो लगता है कि मैं उनके चरणों की धूल भी नहीं हूँ। वो मुझसे प्यार और भरोसा भी बहुत करते है। उनको पता है कि मेरी पत्नी सिर्फ मुझसे ही प्यार करती है। वह सब सच्चाई बताएगी। वह भी एक मित्र की तरह मेरी मदद करते है। वे हंमेशा मेरे साथ रहते है। जिंदगी हर मोड पर जब भी मेरे पैर लडखडाए उन्होंने मेरा साथ दिया। इस बार भी उन्होंने मेरी बात को समझा और मेरा साथ दिया। तब जाकर वह लडका ठीक हुआ। अब आज के नवयुवकों के बारे में आप क्या कहेंगी?
अभी भी मैं तो वही कहूँगी, जिंदगी में ऐसे भी नवयुवक होते हैं जो आदर्शवान भी होते है। सब उनके अपने दोस्तों पर भी निर्भर करता है। कहते हुए वह चायचाले से दो कप चाय लेती है।
अरे! मैंने तो अभी-अभी चाय पी है। कोई बात नहीं चलिए दुबारा आपके साथ पीने का मौका मिल गया। सच बताऊँ तो आपके साथ विषय के बाँटने से मन भी थोडा अच्छा महसूस कर रहा है। जो भी हो आज नवयुवक हो या युवती बेझिझक- बेधडक बात कर लेते हैं। खुलकर हर कोई बात करते हैं। कोई भी बात मन में रखते नहीं है। हमारे समय में हम लोग बात करने से बहुत डरते थे। यौन संबंधी बातें तो दूर की बात है। हमें तो उस बारे में कुछ भी पता नहीं था। आज तकनीक के कारण नवयुवक बहुत कुछ सीख भी रहे है और दूसरी ओर गुमराह भी हो रहे है।
सही कहा,आना जी आपने। लीजिए, बात-बात में कब वक्त निकल गया? पता भी नहीं चला। अगले स्टेशन पर हमें जाना है। आप जैसी हस्ती से मिलकर अच्छा लगा। कभी-कभी ऐसे विरले व्यकित से मुलाकात होती है। चलिए, फिर कभी मुलाकात ऐसे ही ट्रेन के सफर में होगी। फिर भी एक बात तो सच है आपकी ये मुस्कान और आप बहुत सुंदर दिख रहे है। अच्छा मिलते है, कहते हुए गीता जी विदा लेती है। आना मुस्कुराती उनकी ओर ताकती रह जाती है।
© डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’
लेखिका व कवयित्री, सह प्राध्यापिका, हिन्दी विभाग, जैन कॉलेज-सीजीएस, वीवी पुरम्, वासवी परिसर, बेंगलूरु।
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈