लघुकथा – सैनिटाइजर ☆ श्री अशोक वाधवाणी
अस्पताल में हर आने वाले को, रिसेप्शनिस्ट हाथों पर सैनिटाइजर लगाने की सख्त हिदायत दे रही थी। सोशल डिस्टंस के तहत सभी मरीजों को थोड़ा दूर-दूर बिठाया जा रहा था। जिन्होंने मास्क नहीं पहना था, उनको लौटाते हुए, आग्रहपूर्वक मास्क पहनकर आने की बिनती की जा रही थी।
अस्पताल में पूरी तरह शांति पसरी हुई थी। इतने में बाहर से मास्क पहने एक बुजुर्ग व्यक्ति अकेले ही अंदर दाखिल हुए। अपनी वेशभूषा से वे गांव वाले लग रहे थे। उनसे भी सैनिटाइजर लगाने को कहा गया । ऐसा प्रतीत होता था कि वे कोरोना काल में पहली बार किसी अस्पताल में आए हों। उन्होंने अपने हाथों के साथ-साथ, पांवों को भी सैनिटाइजर करना शुरु किया। उसके बाद मास्क को बाहर और अंदर से भी सैनिटाइजर लगाया। वहां उपस्थित सभी लोग एक दूसरे को ईशारा करके उन बुजुर्ग को देखने के लिए कह रहे थे। कुछ लोग मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे तो कुछ अपनी हंसी को बड़ी मुश्किल से रोक रहे थे। रिसेप्शनिस्ट उन बुजुर्ग को समझाने, रोकने की बजाय मूक दर्शक बनी बैठी थी। उन बुजुर्ग को इस तरह सैनिटाइजर लगाते देखकर कई लोगों ने उनका वीडियो बनाना शुरू किया । उनके हावभावों से ऐसा लग रहा था कि मानो उनके हाथों में कोई नई, जबरदस्त चीज हाथ लग गई है जिसे वे सोशल मीडिया पर शेयर करके वाह-वाही लूटेंगे। एक युवक से यह दृश्य देखा नहीं गया। वो लंबे-लंबे डग भरता हुआ उस बुजुर्ग के पास पहुंचा। उनको रोका।
वहाँ बैठी एक महिला ने उस युवक की प्रशंसा करते हुए युवक से कहा, “यहां मौजूद कई लोगों की तरह तुम्हारे हाथ में भी मोबाइल था। तुम भी तो विडियो बना सकते थे।”
“यहां उपस्थित सभी शहरी लोग शायद पढ़े-लिखे और समझदार होंगे, जबकि मैं गांव का रहने वाला कम पढ़ा-लिखा हूँ, इसलिए।” युवक का करारा जवाब सुनकर, महिला ने उसकी पीठ थपथपाई। महिला ने लोगों पर दृष्टि दौड़ाई, वे उनसे नज़रें मिलाने से कतरा रहे थे।
© श्री अशोक वाधवाणी
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