श्री घनश्याम अग्रवाल
(श्री घनश्याम अग्रवाल जी वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि हैं. आज प्रस्तुत है उनकी एक विचारणीय लघुकथा राम-लक्ष्मण। )
☆ लघुकथा – राम-लक्ष्मण ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल ☆
इस पावन पर्व पर एक नयी दृष्टि से लिखी ये लघुकथा, श्रीराम को प्रणाम करते हुए :-
राम जब वन में सीता को ढूंढ रहे थे तो उन्हें एक हार दिखाई पड़ा । उन्होंने लक्ष्मण से पूछा-” देखो, ये हार कहीं सीता का तो नहीं है ? ” इस पर लक्ष्मण ने कहा-” भैया, मैंने तो जीवनभर भाभी के चरण ही देखे हैं, मैं हार नहीं पहचान सकता। हाँ, पायल होती तो पहचान लेता। ” यह पौराणिक प्रसंग पढ़-सुनकर मेरा मन लक्ष्मण की इस पावन श्रद्धा के प्रति झुक गया ।
पर एक बात मन में बार-बार उठ भी रही थी कि राम का लक्षण से यह पूछना, क्या लक्ष्मण का अपमान नहीं है ? लक्ष्मण की पावनता को भला राम से ज्यादा कौन जानता होगा ?
इस सोच-विचार मैं मेरी आँख लग गई । और मैंने सपने में राम से पूछ ही लिया-” आपको तो पता ही होगा कि लक्ष्मण की नजरें सीता के चरणों के ऊपर नहीं होंगी, फिर भी हार के बारे में पूछना क्या उचित,था ? ”
राम बोले-” लक्ष्मण स्वयं को जितना नहीं जानता, उतना मैं उसे जानता हूँ । ये तो फ्लो में, टाइम पास के लिए, यूँ ही उस सहजता से पूछ लिया था। जैसे कि तुम लोग जब ट्रेन आने को ही होती है, तब प्लेटफॉर्म पर गर्दन झुकाये देखते ही रहते हो, और जैसे ही इंजन दिखा, आप उस गर्दन से भी कहते हो ट्रेन आ गई, जो गर्दन खुद इंजन को देख रही थी। बस उसी सहज भाव से लक्ष्मण से पूछा था। ” एक पल रुक कर राम पुनः बोले-” ये तो लक्ष्मण के बारे में कवि-भक्त की महानता थी, वैसे मैं बताऊँ, लक्ष्मण ने सिर्फ चरण ही नहीं, सीता का चेहरा भी कई बार देखा है। सम्भवतः मुझसे भी ज्यादा बार । “
राम के इस कथन पर मैं शंकित-सा लक्ष्मण के पास गया और पूछा-” राम का तुमसे पूछना व उनका कथन क्या उचित है ? “
लक्ष्मण ने कहा-” उन्होंने यूँ ही फ्लो में टाइम पास के लिए सहज पूछा होगा। जैसे ट्रेन आते…”
” बस-बस रहने दो। वो ट्रेन का किस्सा राम से सुन चुका हूँ ।आप तो यह बताइए कि क्या आपने सीता का चेहरा भी देखा है ? “
” क्यों नहीं, अनेक बार। सीता जैसा पावन सौन्दर्य युगों बाद धरती पर आता है। वो अभागा होगा, जो इस पावन सौन्दर्य को न देखे। “
” पर वो कवि-भक्त का तो कथन है कि आपकी नजरें सीता के चरणों के ऊपर कभी नहीं गई। “
वह कवि-भक्त की महानता है, कुछ अतिशयोक्तिपूर्ण। मैं बताऊँ- पाप आँखों में नहीं, मन में होता है। तुम कवि हो । इसलिए कविता के जैसे समझता हूँ ।
” आँखों में जरा झाँकिए
दिल का राज
गहरा दिखाई देता है,
दिल में गर पाप हो
तो कदमों में भी
चेहरा दिखाई देता है। “
मैंने सीता के चरणों भी देखें हैं और सूरत भी। “
” दोनों देखते हो एक साथ। वो कैसे? “
वो ऐसे।कविराज कविता में सुनो-
” सीता के पावन सौन्दर्य में
मैं इतना खो जाता हूँ ,
जब चरण देखता हूँ
तो राम का भाई हूँ
सूरत देखते ही
पुत्र हो जाता हूँ । “
लक्ष्मण फिर बोले-” और सुनो,
” किसी स्त्री का चेहरा उसका पुत्र ही ज्यादा गहराई से पहचानता है, पति से भी ज्यादा। पति चेहरा कम, जिस्म ज्यादा पहचानता है। जबकि पुत्र सूरत, सूरत और सिर्फ सूरत पहचानता है। इसलिए राम ने हार के सम्बन्ध में मुझसे पूछा था। “
इसके बाद मेरी नींद खुल गई । और मेरा मन राम-लक्ष्मण-सीता के प्रति और अधिक श्रद्धा से भर गया । सिर अपने आप झुक गया । हाथ अपने आप जुड़ गए।
© श्री घनश्याम अग्रवाल
(हास्य-व्यंग्य कवि)
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शब्द नहीं है मेरे पास प्रतिक्रिया के लिए उत्कृष्ट रचना धर्मिता अभिनंदन अभिवादन आदरणीय श्री बधाई के साथ