श्री आशीष कुमार
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है।
अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।”)
☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #78 – महानता के लक्षण ☆ श्री आशीष कुमार☆
एक संत थे। वह नदी तट पर आश्रम बनाकर रहते और अपने शिष्यों को शिक्षा देते थे। कुंभी नामक उनका एक शिष्य दिन-रात उनके पास ही रहता था। संत उसके प्रति काफी स्नेह रखते थे। एक दिन उसने संत से सवाल किया, ‘गुरुजी, मनुष्य महान किस तरह बन सकता है?’ संत बोले, ‘कोई भी मनुष्य महान बन सकता है लेकिन उसके लिए कुछ बातों को अपने दिलो-दिमाग में उतारना होगा।’
इस पर कुंभी बोला, ‘कौन सी बातों को?’ संत ने कुंभी की बात सुनकर एक पुतला मंगवाया। संत के आदेश पर पुतला लाया गया। संत ने कुंभी से कहा कि वह उस पुतले की खूब प्रशंसा करे। कुंभी ने पुतले की तारीफों के पुल बांधने शुरू कर दिए। वह बड़ी देर तक ऐसा करता रहा। इसके बाद संत बोले, ‘अब तुम पुतले का अपमान करो।’
संत के कहने पर कुंभी ने पुतले का अपमान करना शुरू कर दिया। पुतला क्या करता! वह अब भी शांत रहा। संत बोले, ‘तुमने इस पुतले की प्रशंसा व अपमान करने पर क्या देखा?’ कुंभी बोला, ‘गुरुजी, मैंने देखा कि पुतले पर प्रशंसा व अपमान का कुछ भी फर्क नहीं पड़ा।’
कुंभी की बात सुनकर संत बोले, ‘बस महान बनने का यही एक सरल उपाय है। जो व्यक्ति मान-अपमान को समान रूप से सह लेता है, वही महान कहलाता है। महान बनने का इससे बढ़िया उपाय कोई और नहीं हो सकता।’
संत की इस व्याख्या से उनके सभी शिष्य सहमत हो गए और सबने प्रण किया कि वे अपने जीवन में प्रशंसा व अपमान को समान रूप से लेने का प्रयास करेंगे।
© आशीष कुमार
नई दिल्ली
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈