श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा मसीहा ।)
☆ लघुकथा – मसीहा ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
पीढ़ियों से प्रजा मसीहाओं के भरोसे रहती आई थी। हर राजा में प्रजा ने मसीहा देखा और हर बार छली गई। प्रजा अकर्मण्य नहीं थी ,पर ‘कर्म करो और फल की चिन्ता मत करो’ के सिद्धांत में उसकी गहरी आस्था थी। प्रजा कर्म करती, फल राजा या दरबारी भोग लेते। अब हालत यह थी कि भूख थी, खेत बंजर हो गये थे। प्यास थी, नदियों में पानी नहीं था। हाथ थे, हाथों के लिए कोई काम नहीं था। लोग बिना किसी पवित्र उद्देश्य के मर रहे थे। प्रजा सदा की तरह मसीहे की प्रतीक्षा कर रही थी।
ऐसी निराशा के बीच प्रजा ने अपने नये राजा में भी मसीहे को देखा। प्रजा का दृढ़ विश्वास था कि यह सचमुच का मसीहा साबित होगा। उसकी वाणी में ओज था, चेहरे पर आत्मविश्वास। वह शेर की तरह चलता था, बाज़ की तरह देखता था, कृष्ण की तरह वस्त्र धारण करता था। प्रजा नये मसीहे की पूजा करने लगी। मसीहे का हर झूठ प्रजा को सच से भी ज़्यादा विश्वसनीय तथा मोहक लगता। हर मसीहे की तरह नया मसीहा भी जानता था (बल्कि औरों से कहीं बेहतर जानता था) कि जैसे प्यार हर व्यक्ति के भीतर सहज ही उपस्थित रहता है, ठीक वैसे ही प्यार से कई गुणा अधिक घृणा भी सहज ही उपस्थित रहती है। उसने पहले प्रजा के भीतर गौरव जगाया कि उसकी प्रजा सर्वश्रेष्ठ है। प्रजा को अपनी क़ीमत समझ में आई। फिर मसीहे ने उनके भीतर की घृणा को कुरेदकर उसमें आग लगा दी। चूँकि घृणा सृष्टि की सर्वाधिक विस्फोटक सामग्री है, सो जल्दी ही आग पूरी रियासत में फैल गई। अब प्रजा रक्त से फाग खेलती है। उसे न रोटी चाहिए, न पानी, न काम। प्रजा ख़ून देखकर अट्टहास करती है और मसीहे की जय-जयकार करती है। उसका दृढ़ विश्वास है कि रक्त की नींव पर जल्दी ही उसके स्वर्णिम भविष्य की भव्य इमारत बनने वाली है।
© हरभगवान चावला
बेहतरीन रचना, चुभते हुए शब्द, बधाई