श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा हम।)
☆ लघुकथा – हम ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
बचपन में मैं इस जंगल में कई बार आया था। तब यह जंगल सघन था, इतना कि धूप की पहुँच धरती तक बमुश्किल ही हो पाती थी; और आज पेड़ इतने विरल कि जंगल को जंगल कहते डर लगता है। मैंने एक पेड़ से पूछा, “जंगल का यह हश्र कैसे हुआ?”
“पेड़ों का क़त्ल कौन कर सकता है- बारिश, बिजली, तूफ़ान, बाढ़, भूकंप या तुम?” पेड़ के पत्ते ज़ोर-ज़ोर से हिलने लगे थे। लगा, जैसे तमाम गुज़रे हादसों को याद कर उनकी चेतना काँप रही हो।
“तुमने बताया नहीं?” पेड़ ने मेरी ख़ामोशी को झिंझोड़ा।
“पेड़ों का क़त्ल हम ही कर सकते हैं।” मैंने कहा।
“और पेड़ों को बचा कौन सकता है?”
“हम।” अचानक पेड़ की छाल में मेरे हाथों ने गीलापन महसूस किया और फिर वह गीलापन मेरे वजूद में उतरने लगा। तभी काँपती पत्तियों में से एक बहुत ताज़ा पत्ती मेरे कंधे पर आ गिरी।
– हरभगवान चावला
© हरभगवान चावला
सुंदर प्रस्तुति