श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – बॉयकॉट।)
☆ लघुकथा – बॉयकॉट ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
साठ-सत्तर हज़ार की आबादी वाले मेरे शहर में मुस्लिमों की संख्या बहुत कम थी। शहर में सिर्फ़ एक मस्जिद थी जो मेरे घर से बहुत दूर थी। साल-दो साल में एकाध बार ही उधर से जाना होता। उस दिन शुक्रवार था। संयोग से मेरा मस्जिद के सामने से निकलना हुआ। लोग जुम्मे की नमाज़ पढ़कर बाहर निकल रहे थे। मैंने देखा – उन लोगों में जालीदार टोपी लगाए दीपक सब्ज़ीवाला भी था। उसने भी मुझे देख लिया था, लेकिन कतराते हुए एक ओर मुड़ गया। शाम को सब्ज़ी खरीदने के लिए मैं उसकी दुकान पर खड़ा था, जहाँ एक लोहे का बोर्ड टँगा था और उस पर लिखा था – दीपक सब्ज़ीवाला। वह मेरे कहे अनुसार सब्ज़ी तोलता रहा, पर एक बार भी आँख नहीं मिलाई। सब्ज़ी पैक हो गई, दाम चुक गए। चलने लगा तो उसने सिर झुकाए-झुकाए कहा, “माफ़ी चाहता हूँ सर, पर दीपक नाम रखना मेरी मजबूरी थी। मुस्लिम इलाक़ों में हिंदू भी ऐसी ही मजबूरी में मुस्लिम नाम रखते हैं।”
“दीपक ही क्यों?”
“दीपक मेरे बचपन का दोस्त है। वह भी मेरी तरह अपने घर से बहुत दूर मुसलमानों के इलाक़े में कारोबार करता है और वहाँ उसने अपना नाम सत्तार रखा हुआ है।”
“हूँऽ…”
“शुक्रिया सर, आपने मेरा बॉयकॉट नहीं किया।”
इस एक वाक्य में निहित बेचारगी ने मुझे कँपा दिया। मैंने पूछा, “तुम्हारा असली नाम क्या है दीपक?”
“सत्तार।” उसने अपना नाम इतना धीरे बोला कि मेरे अलावा हवा भी उसे न सुन सकी।
© हरभगवान चावला