श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है एक बाल गीत – “पानी चला सैर को”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 137 ☆
☆ बाल गीत – “पानी चला सैर को” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
पानी चला सैर को
संगी-साथी से मिल आऊ.
बादल से बरसा झमझम
धरती पर आया था.
पेड़ मिले न पौधे
देख, मगर यह चकराया था.
कहाँ गए सब संगी-साथी
उन को गले लगाऊं.
नाला देखा उथलाउथला
नाली बन कर बहता.
गाद भरी थी उस में
बदबू भी वह सहता .
उसे देख कर रोया
कैसे उस को समझाऊ.
नदियाँ सब रीत गई
जंगल में न था मंगल.
पत्थर में बह कर वह
पत्थर से करती दंगल.
वही पुराणी हरियाली की चादर
उस को कैसे ओढाऊ.
पहले सब से मिलता था
सभी मुझे गले लगते थे.
अपने दुःख-दर्द कहते थे
अपना मुझे सुनते थे.
वे पेड़ गए कहाँ पर
कैस- किस को समझाऊ.
जल ही तो जीवन है
इस से जीव, जंतु, वन है.
इन्हें बचा लो मिल कर
ये अनमोल हमारे धन है.
ये बात बता कर मैं भी
जा कर सागर से मिल जाऊ.
© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
28-04-2023
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