श्री आशीष कुमार
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है।
अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।”)
☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #99 क्रोध पर नियंत्रण… ☆ श्री आशीष कुमार☆
एक बार एक राजा घने जंगल में भटक जाता है, जहाँ उसको बहुत ही प्यास लगती है। इधर उधर हर जगह तलाश करने पर भी उसे कहीं पानी नही मिलता। प्यास से उसका गला सूखा जा रहा था तभी उसकी नजर एक वृक्ष पर पड़ी जहाँ एक डाली से टप टप करती थोड़ी -थोड़ी पानी की बून्द गिर रही थी।
वह राजा उस वृक्ष के पास जाकर नीचे पड़े पत्तों का दोना बनाकर उन बूंदों से दोने को भरने लगा जैसे तैसे लगभग बहुत समय लगने पर वह दोना भर गया और राजा प्रसन्न होते हुए जैसे ही उस पानी को पीने के लिए दोने को मुँह के पास ऊचा करता है तब ही वहाँ सामने बैठा हुआ एक तोता टेटे की आवाज करता हुआ आया उस दोने को झपट्टा मार के वापस सामने की और बैठ गया उस दोने का पूरा पानी नीचे गिर गया।
राजा निराश हुआ कि बड़ी मुश्किल से पानी नसीब हुआ और वो भी इस पक्षी ने गिरा दिया लेकिन अब क्या हो सकता है। ऐसा सोचकर वह वापस उस खाली दोने को भरने लगता है।
काफी मशक्कत के बाद वह दोना फिर भर गया और राजा पुनः हर्षचित्त होकर जैसे ही उस पानी को पीने दोने को उठाया तो वही सामने बैठा तोता टे टे करता हुआ आया और दोने को झपट्टा मार के गिराके वापस सामने बैठ गया।
अब राजा हताशा के वशीभूत हो क्रोधित हो उठा कि मुझे जोर से प्यास लगी है, मैं इतनी मेहनत से पानी इकट्ठा कर रहा हूँ और ये दुष्ट पक्षी मेरी सारी मेहनत को आकर गिरा देता है अब मैं इसे नही छोड़ूंगा। अब ये जब वापस आएगा तो इसे खत्म कर दूंगा।
इस प्रकार वह राजा अपने हाथ में चाबुक लेकर वापस उस दोने को भरने लगता है। काफी समय बाद उस दोने में पानी भर जाता है तब राजा पीने के लिए उस दोने को ऊँचा करता है और वह तोता पुनः टे टे करता हुआ जैसे ही उस दोने को झपट्टा मारने पास आता है वैसे ही राजा उस चाबुक को तोते के ऊपर दे मारता है और उस तोते के वहीं प्राण पखेरू उड़ जाते हैं।
तब राजा सोचता है कि इस तोते से तो पीछा छूंट गया लेकिन ऐसे बून्द -बून्द से कब वापस दोना भरूँगा और कब अपनी प्यास बुझा पाउँगा इसलिए जहाँ से ये पानी टपक रहा है वहीं जाकर झट से पानी भर लूँ ऐसा सोचकर वह राजा उस डाली के पास जाता है जहां से पानी टपक रहा था वहाँ जाकर जब राजा देखता है तो उसके पाँवो के नीचे की जमीन खिसक जाती है।
क्योकि उस डाली पर एक भयंकर अजगर सोया हुआ था और उस अजगर के मुँह से लार टपक रही थी राजा जिसको पानी समझ रहा था वह अजगर की जहरीली लार थी।
राजा के मन में पश्चाताप का समन्दर उठने लगता है की हे प्रभु! मैने यह क्या कर दिया? जो पक्षी बार बार मुझे जहर पीने से बचा रहा था क्रोध के वशीभूत होकर मैने उसे ही मार दिया।
काश मैने सन्तों के बताये उत्तम क्षमा मार्ग को धारण किया होता। अपने क्रोध पर नियंत्रण किया होता तो ये मेरे हितैषी निर्दोष पक्षी की जान नही जाती। हे भगवान मैने अज्ञानता में कितना बड़ा पाप कर दिया? हाय ये मेरे द्वारा क्या हो गया ऐसे घोर पाश्चाताप से प्रेरित हो वह राजा दुखी हो उठता है।
इसीलिये कहते हैं कि..
- क्षमा औऱ दया धारण करने वाला सच्चा वीर होता है।
- क्रोध में व्यक्ति दुसरो के साथ साथ अपने खुद का ही बहुत नुकसान कर देता है।
- क्रोध वो जहर है जिसकी उत्पत्ति अज्ञानता से होती है और अंत पश्चाताप से होता है। इसलिए हमेशा क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए।
© आशीष कुमार
नई दिल्ली
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈