श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – हार गए तो…।)
☆ लघुकथा – हार गए तो… ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
इस बार नेता जी के चुनाव प्रचार में कुछ पुराने कार्यकर्ता तो थे ही, पर ज़्यादातर पिछले पांच साल में पार्टी की सदस्यता ग्रहण करने वाले युवा ज़ोर-शोर से प्रचार में जुटे थे। काफ़ी समय से बेरोज़गार चले आ रहे इन युवाओं ने नेता जी की चापलूसी को ही रोज़गार मान लिया था। पार्टी के चुनाव चिह्न वाला पटका इनके गले में रहता। नेता जी की दबंग छवि के चलते आम लोग इन कार्यकर्ताओं से थोड़े दबते थे और इन्हें देखते ही उनके भीतर का डर सम्मान सनी मुस्कुराहट में बदल जाता था। कभी-कभी कोई व्यक्ति प्यार से इनका कंधा थपथपा कर कहता – और नेता जी! यह सुनते ही कार्यकर्ता गर्वित महसूस करते हुए अति विनम्र हो जाता।
नेता जी ने तमाम कार्यकर्ताओं को स्पष्ट संदेश दे दिया था कि यह चुनाव हमें किसी भी क़ीमत पर जीतना है। अंदरखाते उन्हें सुनील जी से मिल लेने की हिदायत भी दे दी गई थी। सुनील जी नेता जी के खजांची थे। कार्यकर्ता उनके पास अपने-अपने क्षेत्र के बिक सकने वाले मतदाताओं तथा उनकी क़ीमत का हिसाब-किताब जमा करवाते और पैसा ले आते। प्रचार के दौरान दो कार्यकर्ताओं की बात होने लगी। दोनों पुराने परिचित थे और दोनों खुलकर बात भी कर लिया करते थे। युवा कार्यकर्ता ने पूछा – आपने सुनील जी से कितनी रक़म ली?
– एक पैसा भी नहीं, मैं तो सुनील जी से मिला भी नहीं। हाँ, मेहनत कर रहा हूँ।
– सिर्फ़ मेहनत से क्या होता है, अब तो पैसा ही भगवान है। आपके गाँव में तो बिकाऊ वोटर भी बहुत हैं।
– हाँ, हैं तो सही।
– तो फिर पैसे लिए क्यों नहीं, अपना भी चाय-गुड़ बन जाता है तो हर्ज़ क्या है?
– कोई हर्ज़ नहीं है। वोट खरीदने के लिए ये लूट का पैसा ही तो देंगे। लूट के माल में कार्यकर्ता भी थोड़ा मुँह मार ले तो कोई पाप नहीं है।
– फिर आप सुनील जी से क्यों नहीं मिले?
– पिछली बार मिला था, अभी तक भुगत रहा हूँ। दुआ करो कि नेता जी चुनाव जीत जाएँ, हार गए तो…
– हार गए तो?
– हार गए तो जितने पैसे तुम्हें वोटरों में बाँटने के लिए मिलेंगे, सब ब्याज़ समेत तुमसे वापस लिए जाएँगे। पिछले चुनाव में बीस लाख मिले थे मुझे। अट्ठारह-उन्नीस लाख तो मैंने बाँटे भी थे। मेरी बदक़िस्मती कि नेता जी हार गए। ज़मीन बेचकर पैसे चुकाए मैंने! इसलिए कहता हूँ, उनके जीतने की दुआ करो। हार गए तो…
– हार गए तो… हार गए तो… कार्यकर्ता आशंका में डूब रहा था। गर्मी नहीं थी, पर युवा कार्यकर्ता के माथे से पसीना चू रहा था।
© हरभगवान चावला