श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। 

अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से  सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से  बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।”)

☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #103 🌻 ननद-भाभी और रक्षाबंधन 🌻 ☆ श्री आशीष कुमार

एक बहन ने अपनी भाभी को फोन किया और जानना चाहा …”भाभी, मैंने जो भैया के लिए राखी भेजी थी, मिल गयी क्या आप लोगों को” ???

भाभी : “नहीं दीदी, अभी तक तो नहीं मिली”।

बहन : “भाभी कल तक देख लीजिए, अगर नहीं मिली तो मैं खुद जरूर आऊंगी राखी लेकर, मेरे रहते भाई की कलाई सूनी नहीं रहनी चाहिए रक्षाबंधन के दिन”।

अगले दिन सुबह ही भाभी ने खुद अपनी ननद को फोन किया : “दीदी आपकी राखी अबतक नहीं मिली, अब क्या करें बताईये”??

ननद ने फोन रखा, अपने पति को गाड़ी लेकर साथ चलने के लिए राजी किया और चल दी राखी, मिठाई लेकर अपने मायके ।

दो सौ किलोमीटर की दूरी तय कर लगभग पांच घंटे बाद बहन अपने मायके पहुंची।

फ़िर सबसे पहले उसने भाई को राखी बांधी, उसके बाद घर के बाक़ी सदस्यों से मिली, खूब बातें, हंसी मजाक औऱ लाजवाब व्यंजनों का लंबा दौर चला  ।

अगले दिन जब बहन चलने लगी तो उसकी भाभी ने उसकी गाड़ी में खूब सारा सामान रख दिया… कपड़े, फल, मिठाइयां वैगेरह।

विदा के वक़्त जब वो अपनी माँ के पैर छूने लगी तो माँ ने शिकायत के लहजे में कहा… “अब ज़रा सा भी मेरा ख्याल नहीं करती तू, थोड़ा जल्दी जल्दी आ जाया कर बेटी, तेरे बिना उदास लगता है मुझें, तेरे भाई की नज़रे भी तुझें ढूँढ़ती रहती हैं अक़्सर”।

बहन बोली- “माँ, मैं समझ सकती हूँ आपकी भावना लेकिन उधर भी तो मेरी एक माँ हैं और इधर भाभी तो हैं आपके पास, फ़िर आप चिंता क्यों करती हैं, जब फुर्सत मिलेगा मैं भाग कर चली आऊंगी आपके पास”।

आँखों में आंसू लेकर माँ बोली- “सचमुच बेटी, तेरे जाने के बाद तेरी भाभी बहुत ख्याल रखती है मेरा, देख तुझे बुलाने के लिए तुझसे झूठ भी बोला, तेरी राखी तो दो दिन पहले ही आ गयी थी, लेकिन उसने पहले ही सबसे कह दिया था कि इसके बारे में कोई भी दीदी को बिलकुल बताना मत, राखी बांधने के बहाने इस बार दीदी को जरुर बुलाना है, वो चार सालों से मायके नहीं आयीं”।

बहन ने अपनी भाभी को कसकर अपनी बाहों में जकड़ लिया और रोते हुए बोली… “भाभी, मेरी माँ का इतना भी ज़्यादा ख़याल मत रखा करो कि वो मुझें भूल ही जाए”।

भाभी की आँखे भी डबडबा गईं।

बहन रास्ते भर गाड़ी में गुमसुम बेहद ख़ामोशी से अपनी मायके की खूबसूरत, सुनहरी, मीठी यादों की झुरमुट में लिपटी हुई बस लगातार यही प्रार्थना किए जा रही थी… “हे ऊपरवाले, ऐसी भाभी हर बहनों को मिले!”

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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