श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। 

अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से  सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से  बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।”)

☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #104 🌻 शरण 🌻 ☆ श्री आशीष कुमार

एक गरीब आदमी की झोपड़ी पर…रात को जोरों की वर्षा हो रही थी. सज्जन था, छोटी सी झोपड़ी थी. स्वयं और उसकी पत्नी, दोनों सोए थे. आधीरात किसी ने द्वार पर दस्तक दी।

उन सज्जन ने अपनी पत्नी से कहा – उठ! द्वार खोल दे. पत्नी द्वार के करीब सो रही थी. पत्नी ने कहा – इस आधी रात में जगह कहाँ है? कोई अगर शरण माँगेगा तो तुम मना न कर सकोगे?

वर्षा जोर की हो रही है. कोई शरण माँगने के लिए ही द्वार आया होगा न! जगह कहाँ है? उस सज्जन ने कहा – जगह? दो के सोने के लायक तो काफी है, तीन के बैठने के लायक काफी हो जाएगी. तू दरवाजा खोल!

लेकिन द्वार आए आदमी को वापिस तो नहीं लौटाना है. दरवाजा खोला. कोई शरण ही माँग रहा था. भटक गया था और वर्षा मूसलाधार थी. वह अंदर आ गया. तीनों बैठकर गपशप करने लगे. सोने लायक तो जगह न थी.

थोड़ी देर बाद किसी और आदमी ने दस्तक दी. फिर गरीब आदमी ने अपनी पत्नी से कहा – खोल ! पत्नी ने कहा – अब करोगे क्या? जगह कहाँ है? अगर किसी ने शरण माँगी तो?

उस सज्जन ने कहा – अभी बैठने लायक जगह है फिर खड़े रहेंगे. मगर दरवाजा खोल! जरूर कोई मजबूर है. फिर दरवाजा खोला. वह अजनबी भी आ गया. अब वे खड़े होकर बातचीत करने लगे. इतना छोटा झोपड़ा! और खड़े हुए चार लोग!

और तब अंततः एक कुत्ते ने आकर जोर से आवाज की. दरवाजे को हिलाया. गरीब आदमी ने कहा – दरवाजा खोलो. पत्नी ने दरवाजा खोलकर झाँका और कहा – अब तुम पागल हुए हो!

यह कुत्ता है. आदमी भी नहीं! सज्जन बोले – हमने पहले भी आदमियों के कारण दरवाजा नहीं खोला था, अपने हृदय के कारण खोला था!! हमारे लिए कुत्ते और आदमी में क्या फर्क?

हमने मदद के लिए दरवाजा खोला था. उसने भी आवाज दी है. उसने भी द्वार हिलाया है. उसने अपना काम पूरा कर दिया, अब हमें अपना काम करना है. दरवाजा खोलो!

उनकी पत्नी ने कहा – अब तो खड़े होने की भी जगह नहीं है! उसने कहा – अभी हम जरा आराम से खड़े हैं, फिर थोड़े सटकर खड़े होंगे. और एक बात याद रख! यह कोई अमीर का महल नहीं है कि जिसमें जगह की कमी हो!

यह गरीब का झोपड़ा है, इसमें खूब जगह है!! जगह महलों में और झोपड़ों में नहीं होती, जगह दिलों में होती है!

अक्सर आप पाएँगे कि गरीब कभी कंजूस नहीं होता! उसका दिल बहुत बड़ा होता है!!

कंजूस होने योग्य उसके पास कुछ है ही नहीं. पकड़े तो पकड़े क्या? जैसे जैसे आदमी अमीर होता है, वैसे कंजूस होने लगता है, उसमें मोह बढ़ता है, लोभ बढ़ता है .

जरूरतमंद को अपनी क्षमता अनुसार शरण दीजिए. दिल बड़ा रखकर अपने दिल में औरों के लिए जगह जरूर रखिये.

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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