श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर विचारणीय लघुकथा – विरासत।)
☆ लघुकथा – विरासत ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
नाना लॉबी में बैठे थे और रसोईघर में नातिन नव्या पूरियाँ तलती नानी से कह रही थी, “नानी पूरियाँ ज़्यादा बनाना, नानू को ठंडी पूरियाँ बहुत पसंद हैं।”
“अच्छा! तुझे किसने बताया?”
“किसी ने नहीं, मुझे पता है।”
“नानू को तो पसंद नहीं हैं, तुझे होंगी।”
“मुझे नहीं, नानू को…”
रसोईघर में नानी और नातिन की चुहल चल रही थी और नाना सोच रहे थे – मुझे ठंडी पूरियाँ पसंद हैं, यह बात मेरी माँ जानती है, बिना बताए पत्नी यह बात जान गई, फिर बेटी भी जान गई और अब छः साल की नातिन… ये स्त्रियाँ भी विलक्षण होती हैं, पुरुषों की पसंद को विरासत की तरह याद रखती हैं! काश इनकी पसंद की भी कोई विरासत होती!
रसोईघर में दोनों पक्ष अपनी-अपनी बात पर अड़े जिरह कर रहे थे। जिरह को निष्कर्ष पर पहुँचाते हुए नातिन बोली, “आपको कुछ नहीं पता, मैं नानू से ही पुछवा देती हूँ।” वह दौड़ती हुई लॉबी में आई और तड़ाक से पूछा, “आपको ठंडी पूरियाँ पसंद हैं न नानू!”
“हाँ मेरी माँ।” नाना के मुँह से अनायास निकला।
“बस सुन लिया नानी, इतना भी पता नहीं!” नव्या ने ज़ोर से बोलते हुए नानी को चिढ़ाया।
नाना की आँखें भीग गई, होंठ मुस्कुरा दिए। उन्हें लगा, उनकी एक नहीं, चार माँएँ हैं।
© हरभगवान चावला
सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा, सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440
विरासत तभी पीढ़ी दर पीढ़ी बाय डिफॉल्ट स्थान्तरित होती है जब उनका प्यार आपकी अनकही अभिव्यति से म्यूटेशन करता जाता है और न उन्हे ना आपको एहसास होता है शायद यही प्रेम है और कुछ नहीं।