श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर विचारणीय लघुकथा – अब ये क़िस्से नहीं।)
☆ लघुकथा – अब ये क़िस्से नहीं ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
एक पेड़ की अलग-अलग डालियों पर तोता और मैना पिछले चार पहर से ख़ामोश बैठे थे। आख़िर तोते ने ख़ामोशी तोड़ी, “इधर आ जाओ मैना।”
मैना तोते के पास आ बैठी। तोते ने कहा, “अब ख़ामोशी बर्दाश्त नहीं होती मैना। कोई क़िस्सा सुनाओ, तुम्हारे पास तो मर्दों की बेवफ़ाई के हज़ारों क़िस्से हैं।”
“तुम्हारे पास भी औरतों की बेवफ़ाई के अनगिनत क़िस्से हैं, तुम्हीं सुना दो।”
“छोड़ो, आज मैं कोई क़िस्सा नहीं सुना पाऊँगा।”
“मुझसे भी आज यह नहीं होगा।”
दोनों फिर ख़ामोश हो गए। ख़ामोशी फिर तोते ने तोड़ी, “तुमने कल से कुछ खाया नहीं, कुछ खाने को लाऊँ तुम्हारे लिए?”
“मुझे भूख नहीं है। रात भर मुझे उन दोनों की चीख़ें सुनाई देती रहीं। वैसे खाया तो तुमने भी कुछ नहीं?”
“मुझे भी रात भर उनकी चीख़ें सुनाई देती रहीं। उफ़्फ़, कितने बेरहम हैं ये इन्सान! दोनों प्रेमियों को सैंकड़ों टुकड़ों में काट दिया। उफ़्फ़!”
दोनों एक दूसरे की आँखों में झाँकने की कोशिश कर रहे थे, पर दोनों की आँखें धुंधला गई थीं। तोते ने कहा, “कितनी बेढंगी हैं इन्सानों की दुनिया, नफ़रतपसंदों को तख़्त हासिल होते हैं, मुहब्बत करने वालों को मौत।”
“वैसे औरत-मर्द के बीच नफ़रत फैलाने के गुनहगार तो हम भी हैं।”
“सही कह रही हो तुम, हमारे मुहब्बत के क़िस्से आख़िर में अपने पीछे नफ़रत ही तो छोड़ते हैं । अब यह गुनाह हम नहीं करेंगे। अब से हम मुहब्बत के क़िस्से गाएँगे।”
“मुहब्बत का हश्र हमने अभी अपनी आँखों से देखा है। नफ़रतों के इस ख़ौफ़नाक दौर में मुहब्बत के क़िस्से …?”
“नफ़रत के दौर में ही मुहब्बत के क़िस्सों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है।”
“क़दम-क़दम पर मुहब्बत के दुश्मन शिकारियों की तरह मौजूद हैं, ऐसे में हमारे क़िस्से सुनेगा कौन?”
“पेड़ सुनेंगे, हवा सुनेगी, धरती सुनेगी, आसमान सुनेगा और फिर इन्सान भी सुनेंगे। मुहब्बत की ताक़त पर भरोसा रखो।”
“आमीन!” मैना ने कहा, ठीक उसी समय दोनों के होंठों पर उम्मीद से भरी करुण मुस्कान झिलमिला उठी।
© हरभगवान चावला
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈