श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर विचारणीय लघुकथा – लौटना।)
☆ लघुकथा – लौटना ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
“उसे गये साल भर हो गया। कहता था, कुछ बनकर दिखाऊँगा। क्या कभी उसे अपने पिता की याद नहीं आई होगी? मुझे बहुत बार लगा कि वह दरवाज़े के बाहर खड़ा मुझे पुकार रहा है। हर बार वह पुकार मेरा भ्रम साबित हुई। क्या वो कभी नहीं लौटेगा युगल?”
“ईश्वर पर यक़ीन करो। वह अवश्य आएगा। यूँ कोई अपने घर-परिवार को भूल थोड़े ही जाता है। बेटा है वो तुम्हारा, ज़रूर याद करता होगा।”
“नहीं आ पाया तो कोई चिट्ठी ही भेज देता!”
“ये आजकल के बच्चे भी बहुत ज़िद्दी हैं। वह अवश्य ही बड़ा आदमी बनकर आएगा।”
“यह जो कुत्ता है न, साल-डेढ़ साल पहले इतना सा पिलूरा था। मैंने इसे पाला नहीं था, पर यह सारा दिन हमारे दरवाज़े पर बैठा किंकियाता रहता। कभी-कभी मैं इसे रोटी का टुकड़ा डाल देता था, बस। इसको भगाने की मैंने बहुत कोशिश की, पर यह नहीं गया। इसके शोर और गंदगी से परेशान होकर मैं इसे बोरे में भरकर तीस किलोमीटर दूर शहर में छोड़ आया, यह दो दिन बाद ही लौट आया। यह तो कुत्ता है और वो इन्सान होकर भी …”
“कुत्ते, कबूतर तो लौट आते हैं दोस्त ! ये तो इन्सान ही है जो…!”
© हरभगवान चावला
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈