डॉ. हंसा दीप

संक्षिप्त परिचय

यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो में लेक्चरार के पद पर कार्यरत। पूर्व में यॉर्क यूनिवर्सिटी, टोरंटो में हिन्दी कोर्स डायरेक्टर एवं भारतीय विश्वविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक। तीन उपन्यास व चार कहानी संग्रह प्रकाशित। गुजराती, मराठी व पंजाबी में पुस्तकों का अनुवाद। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ निरंतर प्रकाशित। कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार 2020।

आप इस कथा का मराठी एवं अङ्ग्रेज़ी भावानुवाद निम्न लिंक्स पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं। 

मराठी भावानुवाद 👉 मला नाही मोठं व्हायचं… भाग १  – सौ. उज्ज्वला केळकर 

अङ्ग्रेज़ी भावानुवाद 👉 In the world of Elders Part – 1 Translated by – Mrs. Rajni Mishra

☆ कथा कहानी – बड़ों की दुनिया में – भाग – १ ☆ डॉ. हंसा दीप 

परी आठ साल की है। उसे बड़े होने का बहुत शौक है। वह जल्दी बड़ी होना चाहती है। अभी–अभी उसके दूध के दाँत टूटे हैं जिन्हें एक छोटी-सी डिब्बी में सम्हाल कर रखा है उसने। छोटे-छोटे उभरते वयस्क दाँतों को दिखाते हुए वह अपने आपको बड़े लोगों में शामिल करने लगी है। वह रोज़ स्कूल के बाद कई ऐसे काम करना चाहती है जो उसे बड़ा बना दें। वही करना चाहती है जो वह देखती है और जो काम करना उसे पसंद है।  

जैसे कि उसे अपनी टीचर बहुत पसंद है। वे एक जापानी गुड़िया की तरह दिखती हैं। उसे बहुत अच्छी लगती हैं। वे सब बच्चों को अच्छी लगती हैं। उनका नाम है मिस वांग। तो उसकी पहली पसंद है मिस वांग बनना। वैसे ही पढ़ाना, वैसे ही कपड़े पहनना और वैसे ही मुस्कुराना। हाथ में स्केल लेकर बोर्ड पर लिखे गए शब्दों को समझाना। साइंस के बारे में बताना। उन्हें सब कुछ आता है। जब उन्होंने बताया था कि बादल कैसे पानी बरसाते हैं तो पूरी कक्षा दंग रह गयी थी।

वही बात वैसी की वैसी जब घर आकर उसने अपने भाई निक जिसे वह कभी-कभी छोटू भी कहती है, को समझाने की कोशिश की तो वह ध्यान ही नहीं दे रहा था। परी को समझ में नहीं आया कि यही सब जब मिस वांग ने कक्षा में कहा था तो पूरी कक्षा “ओ वाह” कर रही थी। मगर उसके छोटू ने तो इतनी अच्छी बात पर ध्यान भी नहीं दिया। सच तो यह है कि छोटू पूरा का पूरा बुद्धू है, खेलने में लगा रहता है बस। बड़े उत्साह से उसने मम्मी-पापा को बताया तो वे भी “हूँ हाँ” करते रहे। शायद इसीलिये परी को लगा कि उसे अभी मिस वांग की तरह समझाना नहीं आता है। वे बहुत अच्छी तरह समझाती हैं तो ही सब “ओ वाह” करते हैं।

अपनी मम्मी को बताया कि अब वह बहुत मेहनत करेगी, लिखने की, पढ़ने की और खास तौर से समझाने की प्रेक्टिस करनी पड़ेगी क्योंकि उसे मिस वांग की तरह कक्षा दो की  टीचर बनना है। पता नहीं क्यों मम्मी को यह अच्छा नहीं लगा, बोलीं – “तुम प्रायमरी स्कूल की टीचर कैसे बन सकती हो परी, तुम्हें तो डॉक्टर बनना है।”

“नहीं मम्मी, मुझे डॉक्टर नहीं बनना। मुझे किसी को सुई लगाना अच्छा नहीं लगेगा और कड़वी-कड़वी दवाई खिलाना तो बिलकुल भी अच्छा नहीं लगेगा। डॉक्टर तो बहुत खराब होता है। सब बच्चे डॉक्टर को देखकर रोते हैं।”

पता था उसे जब-जब वे शॉट्स के लिए जाते थे डॉक्टर के पास तो बहुत देर बाहर बैठना पड़ता था। उसके बाद जब उनका नंबर आता तो डॉक्टर आकर घुप्प से सुई डाल देती थी उसकी बाँह में। उफ़ कितना दर्द होता था। ऐसे कोई कैसे बच्चे को सुई चुभा सकता है। ऐसा काम तो वह कभी नहीं करेगी।  

परी या छोटू दोनों में से किसी को भी कभी बुखार आता था तो वे डॉक्टर के क्लिनिक जाते थे। बेचारा छोटू तो उस कमरे में घुसते से ही रोने लग जाता और तब तक रोता रहता जब तक कि वे वापस बाहर नहीं आ जाते। जो बच्चों को रुलाए ऐसे लोग उसे बिल्कुल पसंद नहीं हैं इसीलिए उसे डॉक्टर नहीं बनना, कभी नहीं।  

डॉक्टर नहीं, टीचर नहीं तो क्यों न वह सैलून वाला काम करने के बारे में सोचे। सब लोग सैलून जाते हैं। उसे भी तो बाल कटवाने जाना पड़ता है। पापा तो हर सप्ताह जाते हैं। मम्मी भी आईब्रो बनवाने जाती हैं। तो आज उसने सैलून खोलकर दादी, मम्मी दोनों को अपने सैलून में बुलाया। दोनों मेम को चाय-कॉफी के लिए भी पूछा। दोनों के बाल बनाने की कोशिश की। झूठमूठ नेल पालिश लगायी। धागे से आईब्रो बनाने की कोशिश की। धागा छुआ और हटा लिया उतने में भी मम्मी “ऊं आं” करने लगी थीं। उनका असली क्रेडिट कार्ड लेकर नकली तरीके से स्वाइप किया। बहुत खुश थी वह।  

तभी पापा आ गए। उसने उन्हें भी बाल में जेल लगाकर ठीक करने को कहा। पापा ने मना कर दिया, कहने लगे – “क्या परी, तुम भी न! तुम ये काम नहीं कर सकतीं। मेरी राजकुमारी लोगों के बाल बनाएगी! आईब्रो बनाएगी! नहीं, कभी नहीं।”

उसने सोचा अब यह काम भी मेरी लिस्ट से कट गया है, तो फिर करे तो क्या करे। क्यों न कोई अच्छी-सी दुकान शुरू करे। घर में इतने बेकार खिलौने हैं जिन्हें कोई छूता भी नहीं है। वे दोनों अब उन पुराने खिलौनों से तो खेलते नहीं हैं। तो उसने अपने पुराने खिलौनों की दुकान लगा ली और बेचने लगी। उसका छोटा भाई भी इसमें मदद करने लगा। जिनके काम के हैं वे इनके पैसे दे दें और अपनी पसंद का खिलौना खरीद लें। हर खिलौना अगर डॉलर शॉप की तरह एक डॉलर में बेच देती है तो अच्छी कमाई हो जाएगी। बाज़ार में कभी, कहीं इतना सस्ता खिलौना नहीं मिलेगा।

लेकिन यह काम उसकी दादी को पसंद नहीं आया। दादी कहती हैं – “दुकान खोलना भी हो तो नैम ब्रांड की खोलो परी, सेकंड हैंड की नहीं, यूज़्ड चीज़ों की नहीं।”  

अब क्या करे वह। हाँ, आइडिया, दादी की पसंद का काम करने के बारे में सोचने लगी। सोचा गर्मी के दिन हैं बाहर टेबल लगा कर सही का लैमोनेड बना कर बेचेगी। एक डॉलर में एक गिलास बेचे तो गर्मी में इधर से निकलने वाले लोग खरीद ही लेंगे। नींबू निचोड़ लो, खूब सारा पानी डाल दो और शक्कर डाल दो। यह तो हमारी कक्षा ने स्कूल में भी किया था और सबसे ज़्यादा हमारी कक्षा के पैसे इकट्ठे हुए थे।

वह मेज, गिलास आदि सामान जुटा ही रही थी कि दादाजी ने टोका। शायद अब उनकी बारी थी ना कहने की, बोले – “तुम इतने छोटे काम के बारे में मत सोचो बेटा। अपना तो बड़ा फाइव स्टार रेस्टोरेंट है, पूरे शहर में नंबर वन। इसलिए बड़े काम के बारे में सोचो।”

परी जानती है दादाजी घर में सबसे बड़े हैं। वे सारे बड़े काम ही पसंद करते हैं। फिर भी वह समझने की चेष्टा कर रही थी कि ये काम रियल में कई लोग करते हैं उन लोगों के मम्मी-पापा या दादा-दादी उन्हें कभी मना नहीं करते। मैं कोई भी काम करना चाहती हूँ तो मेरा ऐसा काम किसी को पसंद ही नहीं आता। यह मेरे साथ अन्याय है, बहुत निराशाजनक है।

क्रमशः…

© डॉ. हंसा दीप

संपर्क – Dr. Hansa Deep, 22 Farrell Avenue, North York, Toronto, ON – M2R1C8 – Canada

दूरभाष – 001 647 213 1817

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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Subedarpandey

डा हंसा दीप जी बधाई अभिनंदन अभिवादन आदरणीया आप का ,आप ने अपनी कहानी लेखनकला के माध्यम से बालमन की सोच का
जैसा चित्रण किया है, उसे पढ़ते हुए फणीश्वर नाथ रेणु तथा मुंशी प्रेमचंद जी याद आ गए।

हंसा दीप

जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरा सौभाग्य कि आपको कहानी अच्छी लगी, लिखना सार्थक हुआ। हार्दिक आभार आपका।