डॉ. हंसा दीप

संक्षिप्त परिचय

यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो में लेक्चरार के पद पर कार्यरत। पूर्व में यॉर्क यूनिवर्सिटी, टोरंटो में हिन्दी कोर्स डायरेक्टर एवं भारतीय विश्वविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक। तीन उपन्यास व चार कहानी संग्रह प्रकाशित। गुजराती, मराठी व पंजाबी में पुस्तकों का अनुवाद। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ निरंतर प्रकाशित। कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार 2020।

आप इस कथा का मराठी एवं अङ्ग्रेज़ी भावानुवाद निम्न लिंक्स पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं। 

मराठी भावानुवाद 👉 मला नाही मोठं व्हायचं… भाग २   – सौ. उज्ज्वला केळकर 

अङ्ग्रेज़ी भावानुवाद 👉 In the world of Elders Part – 2 Translated by – Mrs. Rajni Mishra

☆ कथा कहानी – बड़ों की दुनिया में – भाग – २ ☆ डॉ. हंसा दीप 

इसी उहापोह में एक सप्ताह निकल गया, अभी तक कोई नया काम परी को सूझा नहीं है। आज शनिवार है। सब बाहर घूमने जा रहे हैं, रॉयल ओंटेरियो म्यूज़ियम देखने। जब वे लोग अंदर पहुँचे तो सब कुछ भव्य था। बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ, काँच के बॉक्स में बेहद नायाब तरीके से सजायी हुई थीं। लेकिन परी वहाँ के सुंदर, अनोखे संग्रहों को नहीं देख रही थी वह तो उस गाइड को देख रही थी जो मीठी आवाज़ में बहुत अच्छी तरह वहाँ का, उन चीज़ों का इतिहास बता रही थी और सभी बहुत ही शांति से उसे सुन रहे थे। कपड़े भी बहुत अच्छे पहने थे उस गाइड ने। काली स्कर्ट, काला ब्लैज़र और गले में लाल स्कार्फ। नैम टैग गले में टंगा था। नया आइडिया उसके दिमाग में कुलबुलाने लगा। ऐसे हील वाले जूते पहन कर वह भी गले में परी का नैम टैग डाल कर गाइड का काम कर सकती है।

वे वापस घर आए तो जो दिन भर किया था वह सब कुछ नानी को फोन पर बताना था। यह एक अच्छा मौका था उसके लिए। सामने टंगा मम्मी का ब्लैज़र पहन लिया, हाई हील के जूते भी पहने और ऊन की डोरी बना कर एक कागज उसमें पिरो लिया जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था “परी”। अपना नैम टैग गले में लटका कर सारी तैयारी पूरी करके नानी को फेस टाइम किया। हूबहू उस गाइड की तरह नानी को फोन पर बताने लगी जो-जो भी उसने वहाँ देखा था। यह भी बता दिया कि वह बड़ी होकर गाइड बनना चाहती है। नानी खूब हँसीं। कहने लगीं – “क्या बात है परी, बहुत बढ़िया। ओ हो मेरे बच्चे को यह काम करना है। गाइड क्यों बनोगे बच्चे आप, आपकी नानी प्रोफेसर है। बनना ही है तो प्रोफेसर बनो न। खूब पैसे मिलेंगे।”

वह तो इस आशा में थी कि नानी उसकी बात को समझेंगी, वे उससे बहुत प्यार करती हैं लेकिन नहीं, वह गलत सोचती थी। नानी को कैसे समझाए कि वह तो जानती तक नहीं कि प्रोफेसर कैसे पढ़ाता है, उसे बच्चे कितना पसंद करते हैं। जब कुछ मालूम ही नहीं तो वह उसके बारे में कैसे सोच सकती है। परी का काम करने का उत्साह उसके लिए एक पहेली बनता जा रहा था। कैसे सुलझाए इस पहेली को।

सामने मेज पर फैले उसके वाटर कलर और क्रेयान्स पर नज़र गई तो क्लिक हुआ कि उसे पेंटिंग का बहुत शौक है। उसका सबसे पसंदीदा काम तो पेंटिंग करना है। पूरी बुद्धू है वह। पहले क्यों नहीं सोचा इसके बारे में। चलो, अभी तो देर नहीं हुई है। अब उसके पास एक ऐसा काम है करने के लिए जो शायद सबको पसंद आए। उसके मम्मी-पापा उसे और छोटू को आर्ट गैलेरी ऑफ ओंटेरियो ले गए थे एक बार। वहाँ बड़े-बड़े चित्रों की प्रदर्शनी लगी थी। ऐसे कई चित्र दिखाए गए थे उसे और कहा था – “देखो बेटा, रंगों का कमाल। कलाकार की मेहनत कैसे रंगों को खूबसूरती से सजाती है। चित्रकला कल्पनाओं और रंगों के बेहतरीन मिलाप से जन्म लेती है।”

आखिरकार, उसने एक अच्छा काम खोज ही लिया। इस काम से किसी को कोई आपत्ति हो ही नहीं सकती।

उसने अपने खाली समय में एक के बाद एक कई चित्रों को बनाया और मम्मी-पापा से कह दिया – “यह मेरा आखिरी फैसला है। मैं कलाकार बनूँगी।”

मम्मी-पापा ने एक दूसरे को देखा और फिर परी को देखा। वह एकटक मम्मी-पापा दोनों को देख रही थी। दोनों एक साथ बोल रहे थे या कोई एक बोल रहा था उसे पता नहीं पर कानों में आवाज़ आ रही थी – “कलाकार तो आप हो ही बच्चे। बहुत अच्छे चित्र बनाए हैं आपने। हमें पसंद भी है आपका यह काम। पर आपका खास काम, फुल टाइम का काम कुछ और होना चाहिए, कलाकार को पार्ट टाइम रखो। यह एक शौक हो सकता है पर आपका मुख्य काम नहीं। जो फुल टाइम कलाकार होते हैं वे तो भूखों मरते हैं।”

फुल टाइम, पार्ट टाइम कुछ पल्ले नहीं पड़ा उसके। भूखे मरने की बात भी गले से नीचे नहीं उतरी। कल तक तो बहुत तारीफ करते थे उन विशालकाय चित्रों की, आज तो भाषा बदल गयी है।

परी बहुत उदास है। बहुत कोशिश कर ली उसने अपना काम चुनने की। इन सब बड़े लोगों की बातें बहुत बड़ी हैं। ये समझते ही नहीं कि जो उसने देखा है और जो पसंद आया है वही तो कर सकती है वह, उसी का ख़्वाब देख सकती है। जो उसने देखा ही नहीं है, और अगर देखा भी है और उसे पसंद नहीं है तो वह काम परी कैसे कर सकती है। उसके हर पसंदीदा काम को ये सब लोग रिजेक्ट कर देते हैं।

अब परी ने बड़े होने का ख़्याल दिमाग से निकाल दिया है वह छोटी ही ठीक है। अपने दूध के दाँत ढूँढ रही है वह ताकि उन्हें फिर से लगा सके।

  – समाप्त –

© डॉ. हंसा दीप

संपर्क – Dr. Hansa Deep, 22 Farrell Avenue, North York, Toronto, ON – M2R1C8 – Canada

दूरभाष – 001 647 213 1817

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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