सौ. उज्ज्वला केळकर
☆ कथा-कहानी ☆आसमान साफ हो गया ☆ सौ. उज्ज्वला केळकर ☆
परेशान हो गए है सब लोग। बारिश का नामोनिशान नहीं। अंदर–बाहर जी ऊबने लगा है। कुसुम की दोनों बेटियां आँगन में झिम्मा खेल रही है।
‘झिम पोरी झिम, तुझ्या कपाळाचे भिंग
भिंग गेलं फुटून, पोरी आल्या उठून’
कुसुम को लगा, अपनी किस्मत भी फूटी है जो सासुराल को छोडकर मायके की ओसारी पर डेरा डालना ज़रूरी हो गया है।
कुसुम को आए चार दिन हो गए। वह बोली तो कुछ नहीं किन्तु गौराई जान गई है, कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है।
‘ क्यों कुसू, दामादजी, तुम्हारी सास, देवर सब ठीक हैं ना?’
‘उन को क्या हुआ है? घूम रहे है, मत्त साँड की तरह।‘
‘बेटी अपने लोगों के बारे में ऐसा नहीं बोलते।‘
‘कौन अपने लोग? वे मेरे कुछ नहीं लगते. मेरी बेटियों के भी..’
‘लेकिन…’
‘लेकिन… वेकिन कुछ नहीं। मैं अब उस घर में कदम नहीं रखूंगी। ससुराल में बारात में जाए और अर्थी पर ही बाहर निकले, ऐसा मेरे बारे में नहीं होगा। मैं अपने पैरों से चलकर यहां आई हूँ। अब यहीं रहूँगी।‘
‘लेकिन हुआ क्या?’
‘वो मेरी सास, वो रांड और वो मेरा पति, मेरी बच्ची का गला घोंटने पर तुले हैं… जन्म से पहले ही… सास कहती है, ‘रांड तुझे लड़का नहीं देगी।‘
‘पर इस बार तुझे लड़का ही होनेवाला है। तू देख लेना, तेरा पेट सामने से आगे निकला है.’
‘ पेट सामने से आगे से निकले या पीछे से, इस बार भी लड़की ही होनेवाली है।‘
‘किसने कहा?’
‘डॉक्टर ने… ।
‘तो डॉक्टर क्या भगवान है?’
‘डॉक्टर ने गर्भ से सुई द्वारा पानी निकाला और ऊसकी जाँच कर के कहा, ‘लड़की ही होगी। तब दोनों बोले, ‘बच्ची निकाल देंगे। पेट साफ करेंगे। जब लड़का होगा, तभी रखेंगे।‘
मैं ने कहा, ‘नहीं… मैं अपनी बेटी को पेट में मरने नहीं दूँगी। तो मुझे उन्हों ने इन लड़कियों के साथ बाहर निकाल दिया। मुझे यकीन है, अगर मैं वहाँ गई, तो मेरी अर्थी ही वहाँ से निकलेगी। मेरी सास बोली, ‘मैं अपने बेटे की दूसरी शादी करूंगी। अपनी बेटियों को लेकर तू मर जा कही!’
अब इस पर क्या कहे, गौराई को समझ में नहीं आ रहा था। वह कुसुम के पीठ पर हाथ फेरती, कन्धे थापथपाती रही।
‘माँ, मैं काम करूँगी। आपनी बेटियों का पालन करूँगी। पेट से रही बच्ची का भी। उन के लिए मैं जिऊंगी। पर माँ, तुम मुझे सहारा दोगी ना? मुझे पराया तो नहीं करोगी ना? थोडे दिनों की तो बात है। बच्ची को जनते ही मैं काम पर लग जाऊँगी। मोल-मजदूरी करूँगी। भैय्या-भाभी पर बोझ बन कर यहां नहीं रहूंगी। मेहनत करूँगी। पैसा कमाऊँगी। बेटियों को पढाऊँगी।‘
गौराई कुसुम के पीठ पर हाथ फेरती रही। उस के हाथ के स्पर्श से ही कुसुम को आश्वासन मिला, उसे चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। गौराई उस के पीछे दृढतापूर्वक खड़ी रहेगी।
बारिश हो चुकी थी। आसमान साफ हो गया था। पूरब में इंद्रधनुष हँस रहा था। उस में कुसुम और उस की बच्चियों के भविष्य के रंग निखर रहे थे।
© सौ. उज्ज्वला केळकर
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