हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी – लघुकथा ☆ मंगलसूत्र ☆ – डॉ संगीता त्यागी

डॉ संगीता त्यागी 

 

(डॉ संगीता त्यागी जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है.  आपकी  रचनाएँ अनेक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. इसके अतिरिक्त आपकी दो पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं. हम भविष्य में डॉ संगीता जी के और चुनिंदा रचनाओं की अपेक्षा करते हैं.)                   

 

☆ लघुकथा – मंगलसूत्र ☆

 

न जाने आज मानसी ने कैसे एक पल में मन में बसे उस संस्कार को कैसे भुला दिया जिसमें किसी भी औरत के लिए मंगलसूत्र ही सुहाग की अनमोल निशानी होती है, कल तक मानसी की भी यही सोच थी।

प्रथम मिलन पर उसके पति ने जो मंगलसूत्र उसे बड़े प्यार से पहनाया था, उसके लिए वो उसकी जान से भी ज्यादा कीमती था ।दोनों हँसी-खुशी जीवन जी रहे थे पर समय की मार के सामने किसकी चलती है। उसके पति को व्यापार में लाखों का नुकसान हो गया, उसकी भरपाई करते-करते लगभग सारी जमा-पूंजी और गहने खत्म हो गए। बड़ी मुश्किल से दोनों ने मिलकर दोबारा से नया काम शुरू किया। घर के दूसरे सदस्य जिनकी छोटी-बड़ी जरूरतें मानसी का पति ही पूरा करता था उन्होंने धीरे-धीरे बोलचाल तक बंद कर दी उनके ऐसे व्यवहार में मदद की उम्मीद तो करना बेकार था। मानसी ने देखा कि कुछ दिन से उसका पति चुप-चुप व खामोश सा रहता है। पति को परेशान देख मानसी भी चिन्तित हो गई और एक दिन पति से खामोशी का कारण पूछ ही लिया कि – क्या बात है आजकल बड़े चुप-चाप रहते हो? कोई परेशानी तो नही है? पति जैसे ही चुप-चाप बाहर जाने को हुआ मानसी ने हाथ पकड़कर अपने पास बैठा लिया और फिर अपना सवाल दोहराया। पति ने अभी तक भी कुछ नहीं बताया तो मानसी ने अपनी कसम दिलाकर फिर पूछा तो उसके पति ने अपनी सारी परेशानी बताई कि पिछले दिनों जो नुकसान हुआ है उससे अन्दर तक टूट चुका हूँ पर परेशानी हैं कि खत्म होने का नाम ही नही ले रहीं है। मानसी ने कहा- सही से बताओ क्या हुआ है? पति ने कहा -मानसी अभी जो हमने नया काम शुरू किया है उसे बढ़ाने के लिए कम से कम साठ-सत्तर हजार की जरूरत है पर इतने  सारे रूपयों का इन्तजाम कहाँ से करूँ। घर के खर्चों के बाद इतना बचता ही नहीं, फिर कहाँ से इन्तजाम करूँ, सुनते ही मानसी की चिंता भी बढ़ गई क्योंकि नुकसान की वजह से घर की सारी जमा-पूँजी और जेवर भी लगभग खत्म हो चुके थे। बड़ी मुश्किल से नया काम शुरू किया था और अभी कुछ इन्तजाम नहीं हुआ तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। पति की आँखों की बेबसी और परेशानी देखकर मानसी के मुँह से अचानक निकल पड़ा-क्यों चिंता करते हो आप? कुछ ना कुछ इन्तजाम हो जाएगा। मेरे मंगलसूत्र पर इतना लोन तो मिल ही जाएगा जिससे हमें इस मुसीबत से छुटकारा मिलेगा और हमारा काम फिर पहले जैसा हो जाएगा। अपने दर्द को छुपाती हुई मानसी पति की हिम्मत बढ़ाने के लिए  मुस्कराते  हुए कहती है कि- तुम भी छोटी-छोटी बात पर परेशान हो जाते हो। मानसी के पति ने कहा- नहीं मैं ऐसा नहीं करूँगा, पहले ही तुम्हारे सारे गहने खत्म हो चुके हैं और अब मंगलसूत्र भी !

मुस्कराते हुए मानसी ने कहा- तुम क्यों इतना सोचते हो? अरे  बाबा! तुम  ही मेरे मंगलसूत्र हो, तुम ही मेरे असली गहने हो, फिर मुझे दिखावे की क्या जरूरत. उठो अब बातें छोड़ो और जितनी जल्दी हो सके समस्या को खत्म करो। फिर मानसी अन्दर जाकर जल्दी से मंगलसूत्र लाकर पति के हाथों में रख देती है । पति भारी मन से बाहर जाता है और पैसों का इन्तजाम कर घर आता है। मानसी ने पति के आने से पहले ही घर का सारा काम खत्म करके पति के लिए खाने की  तैयारी कर ली थी और खुशी-खुशी पति को काम पर भेज देती है।

जैसे ही मानसी का पति घर से बाहर कदम रखता है मानसी अन्दर से दरवाजा बंद कर लेती है। अब तक जो पति की ताकत बनकर मुस्कुरा रही थी अचानक  पति के बाहर जाते ही फूट-फूटकर रोने लगी क्योंकि ना चाहते हुए भी मंगलसूत्र से जुडी यादें उसकी  आँसुओं से भरी आँखों में  अब तैरने लगी थीं……………

 

– डॉ संगीता त्यागी

सहायक प्राध्यापक, नई दिल्ली