श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – सोने के खेत।)

☆ लघुकथा # 44 – सोने के खेत श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

रामकिशोर ने अपनी पत्नी आशा से कहा-  इस बार हमारे खेत में गेहूं की फसल बहुत अच्छी हुई है।  भाग्यवान हमारे खेतों में सोना उगले है।

हम सभी की सारी इच्छाएं पूरी हो जाएगी तुम सब के लिए मैं बाजार से अच्छे-अच्छे कपड़े लेकर आऊंगा। बेटे की  कॉलेज की फीस अच्छे से भर सकेंगें। किसी से कर्ज भी नहीं लेना पड़ेगा।

जो भी तुम सामान खरीदना चाहोगी,मुझे बता दो मैं शहर से लेता आऊंगा। हरि शंकर के साथ ट्रैक्टर में अपनी सारी फसलें लादकर जा रहा हूं, शाम को तो मेरा इंतजार करना।

तुम्हारे लिए मैं शाम को चांदी की पायल लेकर आऊंगा और तुम छम छम कर कर मेरे लिए खेतों में रोटी लेकर आना।

पत्नी ने कहा मजाक मत करो।

तुम बस शहर से मेरे लिए एक सुंदर सी साड़ी ले आना।

रामकिशोर और हरिशंकर दोनों फसल बेचने के लिए मंडी में पहुंचते हैं।

फसल खरीदने के लिए कोई भी व्यापारी नहीं दिख रहे हैं।

फसल बेचने के लिए मंडी में कम से कम 100 लोगों की कतार लगी है।

उसने एक आदमी से पूछा की भैया इतनी भीड़ क्यों है और फसल खरीदने के लिए कोई व्यापारी नहीं दिख रहा है।

उस अनजान व्यक्ति ने कहा कि भैया मैं भी किसान हूं और अपनी फसल को अब लेकर घर की ओर जा रहा हूं और तुम भी चले जाओ यहां पर यह लोग कह रहे हैं ,कि अभी सरकार हमारा गेहूं नहीं खरीदेगी। अनाज की कीमतें तय होने के बाद ही व्यापारी और सरकारी आदमी अनाज खरीदेंगे।

इतना सुनते ही रामकिशोर हाथ पैर सुन्न पड़ गए और उसने  हरिशंकर से कहा-अब क्या होगा तुम्हारी ट्रैक्टर का में किराया कैसे दूंगा ?

ये 50 बोरे गेहूं लेकर कहां जाऊं।  इसी से मेरे घर का खर्च चलता…।

सारी उम्मीदें थी …।

उसकी आंखों के सामने अंधेरा सा छा गया और वह सोचने लगा कि मैं अपने खेत को सोना बोलता हूं पर क्या करूं जाने कब हरि की कृपा दृष्टि होगी लेकिन अब लगता है कि सरकार की कृपा दृष्टि का इंतजार मेरे खेतों को भी करना पड़ेगा और मुझे भी…।

यह सोचते सोचते उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है और वह मूर्छित गिर पड़ता है।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments