श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – खुशी के पल…।)
☆ लघुकथा # 50 – खुशी के पल… ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆
आज इतना जल्दी-जल्दी सब काम कर रही हो? खाना भी बनाकर रख दिया, नाश्ता भी कर दिया, कहीं जाने की तैयारी है क्या? लग रहा है आज तुम्हारी किटी पार्टी है!
हां अरुण आज हमारी पार्टी है और मैं ही पार्टी दे रही हूं। नाश्ता भी पैक करा कर ले जाऊंगी। तुम यह समझ लो हम तुम्हें नहीं छोड़ेंगे। तुम्हें अकेले ही जाना होगा?
ठीक है मैं किसी को छोड़ने को कहां कह रही हूं।
मैं अपनी सहेली मीरा के साथ चली जाऊंगी।
तभी मीरा घर के बाहर जोर से चिल्लाती है – चलो चलना नहीं है क्या?
बहन, हां मैं तो तैयार हूं चल रही हूं।
बहन, चलो पैदल चलते हैं। 50 समोसे के लिए पास की दुकान वाले को बोल दिया है। और बाकी नाश्ता पैक कर के कमला मौसी ले आएंगी।
तभी एक ऑटो वाला आता है वह कहता है – बहन जी कहां जाना है?
हां भैया चलना तो है पर दुकान वाला अभी समोसे तले तो चलते हैं। अरे बहन जी छोड़ो दुकान वाले को बाहर से ले लेना रास्ते में बहुत सारे मिलेंगे। और वह दुकान वाले को चिल्ला के बोलता है दे दो बहन जी ऑटो में ही बैठकर खा लेंगी।
तभी रूबी बोलती है कि नहीं नहीं भैया हमें थोड़ा ज्यादा लेना है तुम जाओ?
हां मैं समझ गया बहन जी आप लोगों को भंडारा करना है ठीक है 5 समोसा मुझे भी दे दो इस गरीब का भी कुछ भला कर देना।
अरे भैया मुझे स्टेशन जाना है छोड़ोगे क्या जल्दी?
तभी एक आदमी भी ऑटो में आकर बैठ जाता है।
हां हां रुक जाओ। यह बहन जी लोगों को लेकर चलता हूं। रहने दो मैं दूसरे ऑटो से जाऊंगी तुम इन्हें लेकर जाओ।
क्या भैया कहां से पनौती आ गये?
मैं अच्छा खासा मैडम लोगों से पैसे भी लेता और खाने को भी मिल रहा था चलो अब?
पता नहीं कहां-कहां से लोग आ जाते हैं रूबी ने चिल्ला कर कहा देखो मीरा गलतफहमी कैसी कैसी लोगों को हो जाती है।
चलो सखी थोड़ी सी देर हम लोग खुश हो जाते हैं तो इसमें घर वाले को एतराज होता है। अब बाहर यह ऑटो वाले को देखो यह भी…।
दोनों सखियां जोर-जोर से हंसने लगते हैं। सच्ची दोस्त ही यह बात समझ सकती है।
छोड़ो सखी सबको खुशी के पल जहां से मिले उसे ले लेना चाहिए।
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© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079
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