श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – जीवन का सुख।)

☆ लघुकथा # 51 – जीवन का सुख  श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

तुम्हारे जीवन में यह चार लोग कौन हैं? मुझे आज तक यह नहीं समझ में आया। पतिदेव कम से कम एक दिन उनके दर्शन करा दो। उनके नाम यू रोज-रोज बातें मत बनाओ?

 ऐसे मत जाओ, बाहर नौकरी मत करो। इस तरह के कपड़े मत पहनो। मेरे ऊपर तुम इतना अनुशासन लगाते  हो?

क्या तुम भी कभी यह चार लोगों की बातें सुनते हो क्या?

भाग्यवान जो बातें मैं कहता हूं, वह तुम्हारे भले के लिए कहता हूं। पीठ पीछे हंसी उड़ाते हैं लोग।

पीठ पीछे तो लोग भगवान को भी नहीं छोड़ते और लोगों की बातें सुनने लग गई तो जीवन जीना मुश्किल हो जाएगा। जिंदगी एक बार मिली है क्या हम खुलकर नहीं जी सकते? यह चार लोग तो घड़ी चौराहे नुक्कड़ में बैठकर कुछ ना कुछ तो कहेंगे ही और जब हम खुश रहेंगे तो हमारी खुशी से जलेंगे। मैं जैसी हूं वैसे ही मुझे रहने दो। मुझे किसी के सामने टोकना नहीं, वरना मेरा मुंह सबके सामने खुल जाएगा। तब मत कहना कि- भरे  समाज में मेरी बेइज्जती कर दी। समझो पतिदेव जीवन का सत्य, सुखी जीवन बिताने में ही है।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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