श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – थोड़े में गुजारा ।)

☆ लघुकथा # 54 – थोड़े में गुजारा  श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

मीरा अचानक सुबह-सुबह अपना सामान पैक करके एक बस में बैठकर घर छोड़कर जा रही है जिसे वह चाहती थी उसी के घर शादी करने के लिए जा रही थी। उसके मन में  डर था, यदि अरुण ने मुझे नहीं अपनाया तो क्या होगा?

वह गहरी चिंता में खो जाती है।

मेरे जीवन का कोई ओर-छोर नहीं है यदि उसने नहीं अपनाया तो क्या होगा?, 

गंतव्य आया और वह बस से नीचे उतरी। अरुण को फोन किया।

अरुण में तुमसे शादी करना चाहती हूं और तुम्हारे घर आ रही हूं ।

जवाब आया – ठीक है आ जाओ?

थोड़ी देर बाद जब घर पहुंची तो अरुण की मां कमला ने दरवाजा खोला।

मां ने कहा–“मेरे पास दो कमरे हैं। एक में तुम रह जाना।

तुम्हें, खाना बनाना पड़ेगा और तुम जो नौकरी या काम चाहती हो वह कर सकती हो। पता नहीं, मेरे बेटे ने तुम्हें  क्या सपना दिखाये है। शायद उसने कहा होगा कि हम बहुत बड़े आदमी हैं। पर बेटा मैं तुम्हें झूठ और दिखावे में नहीं रखना चाहती। जीवन की हकीकत यही है। यदि तुम इसमें नहीं पिसना चाहती तो हमें छोड़कर जा सकती हो।  तुम्हें मंजूर हो तो तुम मेरे बेटे से शादी कर सकती हो। 

रात के बाद, भोर का तारा टिमटिमाते हुए दिखने लगा ।

मीरा की आंँख से प्रेम भरे अश्रु झरने लगे।

तभी उसकी सासू मां कमला ने कहा कि थोड़े में ही गुजारा करना पड़ेगा इसलिए सोच समझकर निर्णय लो। मुझे तो थोड़े में गुजारा करने की आदत है पर तुम बड़े घर की लड़की हो।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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