श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – हम तो गुलाम हैं…।)
☆ लघुकथा # 57 – हम तो गुलाम हैं… ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆
आज क्या बात है सोहन तुमने जल्दी दुकान को साफ कर दिया? सारी चीज अच्छे से जमा दिया और सफेद, ऑरेंज, हरे रंग के गुब्बारे से पूरी दुकान को सजा दिया। शाबाश बहुत बढ़िया किया।
भैया मैंने बहुत अच्छा काम किया इसके बदले में आज मैं शाम को 4:00 बजे जल्दी छुट्टी करके घर जाना चाहता हूं।
दुकान के मालिक किशोर ने कहा – वह तो मैं समझ गया था कि इतने काम करने के पीछे कुछ न कुछ मतलब होगा ।
सुनो, छुट्टी तो तुम्हें 7:00 बजे ही मिलेगी। अभी मैं दुकान का सामान लेकर पास में जो परेड ग्राउंड है वहां पर जा रहा हूं। बड़े-बड़े लोगों ने बुलाया है और जल्दी-जल्दी गिफ्ट पैक करो वहां पर सबको खेलकूद के लिए उपहार दिए जाएंगे।
भैया जब आप आओगे तब मैं चला जाऊंगा?
तुमने भी क्या छोटे बच्चों की तरह रट लगाकर रखी है। मैंने कहा जल्दी नहीं जाना है। ज्यादा बकवास करोगे तो रात में 10:00 ही जाने दूंगा।
ठीक है भैया सामान पैक करके उसने गाड़ी में रख दिया।
अपनी पत्नी और बच्चों को फोन किया कि तुम लोग जाओ घूम कर आओ मैं नहीं आ सकता। दुकान के मालिक भी परेड ग्राउंड गए हैं। शाम को 7:00 बजे छुट्टी देने के लिए भैया ने बोला है। फिर हम लोग एक साथ बाहर खाना खाने चलेंगे। आज तुम बच्चों के साथ घूम के आ जाओ। कुछ सामान बच्चों को दिला देना। मैंने कुछ पैसे बच्चों के अकाउंट में डाल दिये हैं। बिटिया सुमन ऑनलाइन पेमेंट कर देंगी। कम से कम तुम लोग तो मजा करो मेरी मजबूरी को समझो।
तभी बिटिया सुमन ने फोन लेकर कहा कि ठीक है पापा हम लोग शाम को इकट्ठे खाना खाने चलेंगे। आप हमारी चिंता मत करो।
ठीक है बेटा ध्यान से जाना। सोहन दुकान में बैठे-बैठे सोचने लगता है। देश आजाद हो गया संविधान लागू हो गया। लेकिन हम गरीबों को कभी आजादी नहीं मिलेगी। जब तक जीवन है काम करना पड़ेगा। घूमना फिरना तो बड़े रईसों का काम है। हमारे लिए कैसा जश्न? हम तो गुलाम हैं।
© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत ही उत्कृष्ट रचना, जो आजकी परिस्थिति है और पहले भी थी, इसका वास्तविक चित्रण
बधाई हो