श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – अनमोल।)
☆ लघुकथा # 61 – अनमोल ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆
“मां ये घर कितना गंदा है तुम साफ सफाई क्यों नहीं करती? कोई कामवाली क्यों नहीं रख लेती ?”
आज मायके आई कविता ने सफाई करते हुए अपनी मां से कहा – “तुम्हारे घर में बैठने की भी जगह नहीं है। तुम कैसे रहती हो?”
मां कमला ने कहा – “बस किसी तरह दिन काट रही हूं? अब तुम लोगों के बिना घर-घर नहीं है?”
“मां यह तो पुरानी लालटेन और डिबरी है जिसमे हम तेल डालकर जलाया करते थे बचपन में। डिबरी कितनी सुंदर-सुंदर मिलती थी आज भी तुमने इसे संभाल के रखा है।”
देखते ही कविता पुरानी यादों में खो गई।
बत्ती गुल हो जाती थी तब मां कितने प्यार से कहती – “बिट्टी डिबरी/लालटेन साफ कर लो और जला लो।”
“मां लालटेन में कितनी सुंदर डिजाइन बनी है?”
तभी माँ ने कहा- “अरे ! मैं कब से आवाज लगा रही थी नाश्ता कर ले ।”
“ये क्या काम में लगी हो?”
“अपने बच्चों को भी अपने जमाने की चीज दिखाऊंगी? आजकल यह सब घरों में लोग बड़े शौक से रखते और सजाते हैं।”
मां ने कहा – “ठीक है ले जाना।”
कविता ने कहा “मै इसे अपने साथ ले जाऊंगी, मेरे लिए ये लालटेन अनमोल है।”
© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈