श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी लघुकथा – उलझन।)
☆ लघुकथा – उलझन ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆
वर्षा ने अपनी मां से पूछा – मां क्या हो गया, किसका फोन था? कहीं आप की सखी का तो नहीं। हद हो गई अब तो?
देखो ! अब हम लोग उनके बच्चों को बर्दाश्त नहीं करेंगे, गाली देकर बात करते हैं, और हमारे पूरे घर को अस्त-व्यस्त कर देते हैं । सारा दिन खाने की फरमाइश करते हैं कभी मैगी, तो कभी पास्ता और कोल्ड ड्रिंक और न जाने क्या-क्या? देखो मैं कुछ नहीं बनाऊंगी। मुझसे मदद की उम्मीद मत करना!
आंटी को तो मॉल घूमना फिरना और शॉपिंग करना रहता है और हमारे पास अपने बच्चों को छोड़कर चली जाती हैं।
डैडी देखो मां को…,
बात को काटते हुए रितेश ने कहा- क्या हो गया ? फिर से तो अपनी सहेली की नौकरानी बन रही है।
क्या करोगी बेटा तुम्हारी मां खुद बेवकूफ है, और हम सब को पूरे समाज में बेवकूफ साबित करती है, पता नहीं कब तुम्हारी मां को अक्ल आएगी, मैं जा रहा हूं ऑफिस।
सुरीली ने कहा रुको- “पराठा सब्जी बना है, तुम टिफिन लेकर जाओ।”
रितेश ने कहा रहने दो, तुम्हें तो घर फूंक कर तमाशा देखने में मजा आता है।
वर्षा ने अपनी मां को गुस्से में बोला देखो मां तुम्हारे कारण डैडी भी नाराज होकर बिना टिफिन लिए चले गए?
इस समस्या का मैं तुम्हें एक उपाय बताती हूं तुम कुछ मत करो बस बिस्तर पर चुपचाप लेट जाओ।
मैं तुम्हारे पैर में पट्टी बांध देती हूं, लेकिन तुम्हारी दोस्त जब आएगी तब तुम चुपचाप आंख बंद करके सोती रहना।
इतने में बाहर से रितु की चिल्लाने की आवाज आई, कहां हो नीचे मेरा ऑटो खड़ा …..?”
वर्षा बोली- “आंटी अंदर आइये, मुझे आपसे मदद चाहिए। आंटी देखिए न मम्मी को पता नहीं अचानक क्या हो गया है ? पैर में लग गई और अचानक बेहोश हो गई है। मुझे मम्मी को डॉक्टर के पास लेकर जाना है। क्या आप मम्मी को डॉक्टर के पास लेकर चलेंगी मेरे साथ, क्योंकि पापा न जाने कहां चले गए हैं, उनका फोन भी नहीं लग रहा है?
यह सब सुनकर रितु ने कहा- अरे! मैंने सुबह फोन किया था तो एकदम ठीक थी।
वर्षा ने कहा – हां आंटी लेकिन उसी के बाद जब काम करने मम्मी किचन में गई तो उनका पैर फिसल गया आंटी आप तो मम्मी की अच्छी दोस्त हैं आप प्लीज मदद करेंगी।
रितु ने कहा- मुझे एक बहुत जरूरी काम से जाना है। मैं जरूर उन्हें लेकर अस्पताल जाती। ऐसी हालत में छोड़ कर नहीं जाती। तुम ऐसा करो अपने पापा को फोन लगाने की कोशिश करते रहो? ठीक है अपना और मम्मी का ख्याल रखना, मैं चलती हूं। अपने बच्चों को लेकर रितु जल्दी से चली गई।
संध्या उठी वर्षा से बोली – हे प्रभु ! क्या अच्छे लोगों की दुनिया नहीं है?
दुनिया में नेकी का फायदा सभी लोग उठाते हैं वर्षा तुमने सारी उलझन दूर कर दी इसी खुशी में शाम को पार्टी करेंगे।
© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈