श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा अनुशासन…’।)

☆ लघुकथा – अनुशासन… ☆

फौज के सख्त अनुशासन ने उन्हें कठोर बना दिया था. वो मेजर थे.  एक अभियान में भाग लेते समय बारूदी विस्फोट में, उनके हाथ का पंजा उड़ गया था.  बहुत दिन अस्पताल में भरती रहे. दिव्यांग होने पर फौज से सेवा निवृत होने के बाद, इस शहर में स्कूल के प्राचार्य बने थे. कठोर, अनुशासन से और उनके सख्त स्वभाव से उनकी शहर में अलग पहचान बन गई थी. 10.30 बजे स्कूल में प्रार्थना शुरू होती थी. समय पर सभी शिक्षक और विद्यार्थी पहुंचने लगे थे, क्योंकि मेन गेट उस समय बंद कर दिया जाता था. किसी को भी इस के बाद प्रवेश नहीं. शिक्षक जो नहीं आ पाते थे, उनकी छुट्टी काउंट हो जाती थी.

राम नरेश स्कूल का प्यून था, जो गेट बंद कर देता था, पीयूष शहर के विधायक का पुत्र था, उद्दंड था, पैसों का बहुत घमंड करता था,  ड्रग्स भी लेता था, शिक्षकों की इज्जत भी नहीं करता था, कोई भी उसके पिता के भय से, उससे कुछ नहीं कहता था, सब डरते थे. अक्सर देर से ही आया करता था.  रामनरेश भी उससे डर कर गेट खोल दिया करता था. पर आज तो खुद प्राचार्य गेट के पास थे. पीयूष गेट के बाहर था,  वह गेट खोलने के लिए चिल्ला रहा था, प्राचार्य सुकेश ने उससे कहा,  जाओ,  आज तुम्हारी छुट्टी कल अपने पिताजी को लेकर आना, तब प्रवेश मिलेगा, पीयूष भड़क गया. प्राचार्य को धमकी देने लगा, तुम्हें सस्पेंड कर दूंगा, ट्रांसफर करा दूंगा, मुझे जानते नहीं हो, प्राचार्य ने गेट खुलवाया और खुद बाहर निकल कर उसे पकड़ कर स्कूल में अंदर ले आए, और अपने कमरे में ले जाकर अच्छी तरह से पिटाई कर दी, और कहा, खड़े रहो यहां, आप शिक्षक का सम्मान भूल गए हो, मुझे याद दिलाना पड़ेगा, किसी ने पीयूष के पिताजी को खबर कर दी, वो गुस्से में स्कूल आ गए और प्राचार्य के कमरे में आ गए.

प्राचार्य जी कैसे हिम्मत हो गई आपकी मेरे बेटे पर हाथ उठाने की, आप जानते नहीं, यह मेरा बेटा है, विधायक रामशरण का बेटा.

प्राचार्य सुकेश ने कहा,  मैं बच्चों को पढ़ाते या सुधारते समय उनके पिता की हैसियत नहीं देखता, प्रलय और निर्माण शिक्षक की गोद में पलते हैं. मेरे लिए सभी बच्चे पुत्रवत हैं, यह उद्दंड हो रहा था, इसलिए इसका उपचार किया है, और दवा तो थोड़ी कड़वी होती ही है.

विधायक, ने सारी बात समझी, और कहा,  सर हमारे लाड़ प्यार ने इसे बिगाड़ दिया हैं, अब आप हैं तो आपके संरक्षण में ये सुधर जाएगा, मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है, बस कृपा बनाए रखियेगा, कभी निवास पर पधारिए सर और विधायक जी उठ कर चले गए.

पीयूष को भी अपनी गलती समझ आ गई,  उसने प्राचार्य जी के चरण छुए, और अपनी गलती की माफी मांगी.और भविष्य में गलती की पुनरावृत्ति न करने का कहा.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments